अब क्या होगा ?

अब क्या होगा ?

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अम्मा!!अम्मा!!

फ़ोन पर किसी की बात सुनकर रमेश जोर से चिल्लाया ...."आधी रात को कोई बुरा सपना देख लियो का ? यह लड़का भी ना, रात भर देर तलक पढ़ता हैं फिर सुबह मुंह ढापे पड़ा रहता हैं "

.मीना की माँ ने रजाई एक तरफ सरकाई और पलंग  के पास चप्पल खोजने लगी .तब तक रमेश अम्मा के पास आ पहुंचा .उसकी बदहवास हालत देख कर अम्मा का दिल जोर से धड़क उठा "क्या हुआ?"

"अम्मा ! वोह .वॊऒऒऒऒऒऒऒ "

 "क्या वॊओ वॊऒओ किये जा रहे हो क्या हुआ "

 "अम्मा! वो जीजी जी ....जी इ इ इ इ इ "

 "हाय रे! मेरी फूल सी लाडो को क्या हुआ" 

 "अम्मा वो हस्पताल में हैं "

 "हाय रे !!!"

" हमको दिल्ली जाना पड़ेगा"

 "लग गयी होगी ठण्ड, मरजानी दिल्ली की ठण्ड भी तो। "

" कित्ती बार कहा इस लड़की को गरम कपड़े पहना कर पर  यह आजकल की लडकियाँ " ! 

"इस बार तो लड्डू भी न भेजे मैंने बनाकर "

 "पिछली बार भी कित्ती खांसी हुई थी और बुखार भी .. "

 अम्मा थी कि बुदबुदाये जा रही थी, खुद ही खुद पर और कभी खुद को कोस रही थी कि इस बार लड्डू क्यों नही बना कर भेजे।

 "खुद डाक्टर बन रही हैं पर इलाज तो माँ के ही काम आते हैं ना। चार किताबे पढ़ लेने से जिन्दगी पढ़नी नही आ जाती इन बच्चों को" 

 अलमारी से अपने गरम कपड़े निकाल कर बैग में भरती अम्मा अनजान थी कि रमेश अपने बाबूजी के कान में क्या कह रहा उन्हें तो अपनी फूल सी मीना याद आ रही थी बहुत मेधावी थी उनकी मीना। उनकी बिरादरी वालों ने बहुत चाहा कि अम्मा अपनी मीना का ब्याह कर दे अब,अच्छा  घर बार देखकर, पर अम्मा को मीना को अभी किसी बंधन में नही रखना था उसको डॉ बनने का शौक था सो उसको बनने भेज दिया। 

 बड़ी मुश्किल से उसे देहरादून के पैरामेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला था चार वर्ष से पढ़ाई में व्यस्त रहती थी मीना लेकिन अब डॉ की पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी भी चाहिए थी ताकि माँ पापा पर आर्थिक दबाव न रहे ।

 "देहरादून में भी बहुत स्कोप हैं  परन्तु दिल्ली में इंटर्नशिप करने से अच्छी नौकरी मिलेगी '...मीना की बात से अम्मा ने उसको दिल्ली जाने दिया ।

 कितनी खुश थी लाडो, परसों ही तो फ़ोन पर बात हुयी थी माँ बेटी में कि "अम्मा आप परेशान मत होना मैं यहाँ ठीक हूँ "

 जानती थी अपनी बेटी को बहुत ही संस्कारी लड़की हैं ऐसा नही कि उसने अपनी बेटी को नए ज़माने के साथ चलना नही सीखाया था परन्तु उसकी बेटी गुणवान ओर संस्कारी थी कि कुछ भी करती थी तो माँ के संज्ञान में ...

 "ना जाने कैसे होगी ?"

 नहा कर जब बाहर आई तो देखा कि रमेश के बापू भी तैयार होकर खड़े थे कितने खिलाफ थे यह मीना के डाक्टर बन जाने के ...कि जमाना बहुत ख़राब हैं लड़की जात हैं ब्याह के अपने घर जाए वह जाकर जो मर्जी करे जितना मर्जी पढ़े ...आज बिटिया की तबियत जरा सी नासाज हुई नही कि साथ चलने को तैयार हो गये । मीना की अम्मा मन ही मन मुस्कराने लगी ... कार में बैठ कर भगवान को मन ही मन नमस्कार करके यात्रा शुभ हो की कामना करने लगी।

सुबह के चार बजने को हैं सुबह ट्रैफिक कम होता है फिर भी रमेश ने कार तेज स्पीड से चलानी शुरू कर दी । 

 शायद बहन की फ़िक्र हैं इसको भी, भगवान इन भाई बहन का प्यार हमेशा बनाये रखे। उसने नजर भर कर रमेश के बाबूजी को देखा ...कैसा पीला लग रहा हैं चेहरा ....बेटी की फ़िक्र या इतनी जल्दी सुबह उठने की वजह से .. जो भी हो जब बेटी का हाथ हाथो में लेंगे और वो कहेगी कि बाबूजी ताश खेले भाभो में हर बार की तरह इस बार भी मैं ही जीतूंगी तब देखना कैसे मंद मंद मुस्करायेंगे।

 कार तेजी से दौड़ रही थी साथ ही मन भी ....बस मीना की डाक्टरी  पूरी हो जाए तो इसका ब्याह कर दूँगी अगले साल ... छोटे छोटे नाती नातिनो के साथ खेलने का बड़ा मन करता हैं। साथ वाली रामो जब अपने बच्चों संग मायके आती है और उसके बच्चे जब उसको भी गोरी नानी कहते हैं तो मन कही सुकून सा पाता है कि उसके नाती भी उसको गोरी नानी कहेंगे या आजकल के माँ - बाप की तरह मीना भी उनको बड़ी मम्मा कहना सिखाएगी ।

 सोच के सागर में गोते खाती मीना कब दिल्ली पहुँच गयी पता भी नहीं चला। कार सफदरगंज अस्पताल के सामने रूक गयी रमेश तेजी से रिसेप्शन पर पंहुचा अम्मा सामने रखी कुर्सी पर बैठ गयी।

 सुबह सुबह अखबार पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता हैं। पहले पेज के तीसरे कलम में एक खबर पर नजर एक पल को रुकी " दिल्ली में चलती बस में एक छात्रा से गैंग रेप " 

"निगोड़े ,"क्या हो गया यह आजकल के बच्चों को ! लड़कियां दिल्ली जैसे राजधानी में ही जब सुरक्षित नही तो गाँव के दबंगों के सामने उनकी क्या हिम्मत ! मन ख़राब सा हुआ पढ़ कर और अखबार सामने रख कर देखने लगी कि रमेश किधर गया ? 

 सामने से दो पुलिस वालियों के संग रमेश आ रहा था "इसकी आँखे रोई सी क्यों हैं ? माँ का मन आशंकित हुआ 

" अम्मा जी हिम्मत रखो हम आरोपी को छोड़ेगे नही "

"अरे हुआ क्या???"

" मेरी बच्ची को क्या हुआ ?"

"अरे रमेश!!!"

" हाय मेरी बच्ची !"

 तेजी से कदम रखती वोह आई सी यू की तरफ भागी जिधर से रमेश आया था 

"हाय मेरी बच्ची !!!तुझे भगवान् मेरी भी उम्र दे "

मन ही मन बलाए उतरती एक माँ की आँखों से आंसू बहने लगे 

रमेश के बाबु जी माथा पीट रहे थे 

रमेश की आँखे खून के आंसू रो रही थी 

पुलिस वाली ने हाथ थामकर उनको सब बताया 

( नही सीसा उड़ेल दिया उसके कानो में )

 वोह सब !!

 जिसको कभी कोई माँ- बाप नही सुन ना चाहेगे 

 कोई भाई इस दिन को देखने से पहले मर जाना चाहेगा 

 अपनी हाथ की राखी उसको जहर लगने लगेगी 

 उसके सामने अखबार की वोह खबर घूम गयी 

 धच्च! से वोह जमीन पर गिर गयी 

 पूरी दिल्ली में सिर्फ मेरी बेटी !!!

अब माँ के हाथ जो उसकी सलामती की दुआ कर रहे थे 

सोचने लगे कि वो दुआ करे तो क्या? 


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