मौसम हुआ गुलाल

मौसम हुआ गुलाल

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"विधवा होकर भी रंग नहीं छूटे इसके, देख तो इसको  मायके जाकर होली खेल आयी भाभी संग "

  मायके से मिठाई लेकर लौटी निशा के मोबाइल में फ़ोटो देखते हुए बड़ी जेठानी ने व्यंग किया 

" होली तो कल है लेकिन कुछ तो दीन दुनिया का ख्याल रख लिया होता , सुहागन लग रही माथे पर लाल रंग लगाए " 

छोटी जेठानी ने भी ताना मारकर बहती गंगा में हाथ धो लिया 

"माँ चाचा के जाने का शोक पापा ही इनसे ज्यादा मना रहे है "

जेठ की बेटी ने भी तीर चुभाने में कोई कसर न छोड़ी 

"दीदी मेरी भाभी की पहली होली थी , तो उन्होंने ज़बरदस्ती टीका लगा दिया कि मुझसे आज लगवा लो फिर मैं मायके चली जाऊंगी होली खेलने "

 निशा ने सर झुका कर अपराधी की तरह कहा 

"तो मायके में ही रह लेती न , अच्छे से होली खेल कर आती यहां हमारे साथ क्यो रह रही है" 

 निशा की आँखे भर आयी और बिना कुछ बोले वो अपने कमरे में चली गयी लेकिन दोनो जेठानी का बुदबुदाना जारी था ।

 

 तंग आ चुकी थी इन सब तानो से ,  कभी यह रंग न पहनो कभी इससे न बोलो कभी घर के बाहर के जरूरी काम के लिये सबके मुँह जोहते रहो 

रोते रोते निशा सूटकेस में अपने कपड़े भरने लगी ।   शायद सबसे अलग स्वतंत्र रहकर मुट्ठी भर खुशियाँ ढूंढ सकेगी ।

 कमरे के बाहर शोर बढ़ रहा था उसने बाहर जाकर देखा 

 जेठ जी दोनो जेठानियों से ओर बिटिया से गुस्से में बोल रहे थे ।

"दिक्कत क्या है तुम्हारी? ,तुम  सब कपड़ो ओर फैशन के अनुसार बिंदी सिंदूर जैसे सुहाग चिन्हों का प्रयोग करते हो ओर अगर तब कोई टोके तो उसको आउटडेटिड कह देती हो ।उसने अपनी भाभी की खुशी के लिये माथे पर एक लाल टिका क्या लगा लिया तुम सबने आसमान सिर पर उठा लिया ।"

 "वक़्त कब क्या रंग दिखाए कुछ नहीं मालूम ।वैधव्य उसने नही चुना है ईश्वर ने उसे दिया है ,तुम सबने तो अपनी मर्ज़ी से सुहाग चिन्हों का चुनाव करती हो"

   "ओर हाँ!!!सुन लो सब कान खोल कर "

" कल होली घर में सब खेलेंगे ओर आज के बाद छोटी बहू सब रंग पहनेगी । कोई नहीं रोकेगा उसको किसी भी बात से ।"

 बूढ़ी सास ने रुमाल से आंखे पोंछ ली 

 निशा को अपने चारों तरफ होली के रंग बिखरे नजर आने लगे 

  उसने अलमारी से निकाले कपड़े वापिस अलमारी में लगाने शुरू कर दिए 

#positiveindia


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