अतीत की रिंगटोन

अतीत की रिंगटोन

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आज फिर सर्द हवाए चल रही हैं। कपड़े धूप मेंसुखाने के लिय बाल्टी उठायी ही थी कि लैंडलाइन फ़ोन की घंटी बजी। लैंडलाइन की घंटी बजना यानी किसी अपने का ही फ़ोन होगा।आजकल इस नंबर को कौन याद रखता है। सब अपने-अपने सेल में एक नंबर फीड कर लेते हैं और उस पर नाम चस्पां कर देते हैं, फलां का नंबर। और अगर कभी सेल फ़ोन बीमार पड़ जाए तो वो नंबर भी बीमार पड़ जाताहै। उसे पाने के लिए जान-पहचान वालों के वे नंबर मिलाने पड़ते हैं जो संयोग से याद रह जाएँ। घंटी एक बार बंद होकर दुबारा बजनी शुरू हुई। पक्का कोई अपना ही है, बेसब्र बेताब सा……। गीले कपड़ों के साथ भीतर जाना पड़ेगा --सोचती हुई मनीषा शाल उठाकर भीतर कमरे में चली गई। जैसे ही उसने फ़ोन उठाया, वह बंद हो गया। गुस्से से चुपचाप लाल फ़ोन को घूरती रही कि कौन होगा! फिर से फ़ोन की घंटी बजी। उसने एकदम से फ़ोन उठाया और 'हेल्लो…ऽ…' कहा।

एक ख़ामोशी-सी थी दूसरी तरफ। उफ्फ्फ्फ़। 'हेल्लो… हेल्लो…' बार बार कहने पर भी उधर से कोई आवाज़ नहीं आई। वह सोचने लगी--क्या पता उनकी आवाज़ नहीं आ रही हो मुझ तक, मेरी तो जा रही होगी न…। तो एकदम-से बोली, "सुनिये, आप जो भी हैं, मुझे आपकी आवाज़ नही आ रही है। अगर आपको मेरी आवाज़ आ रही है तो या तो फिर से कॉल मिलाएँ या मेरे सेल फ़ोन पर कॉल करें …" कहकर मनीषा ने फ़ोन रख दिया और इंतज़ार करने लगी। क्या पता फिर बजे फ़ोन …… पर फ़ोन नही बजा।

फ़ोन के पहली बार खाली बजने और उसके दुबारा बजने के बीच के समय में घर की सूनी दीवारें भी बात करने लगती हैं; और कल्पनाएँ होने लगती हैं कि उसका फ़ोन होगा, इसका फ़ोन होगा। पता नहीं क्या बात होगी जो लैंडलाइन पर फ़ोन आया! यह नंबर तो सिर्फ फलाने-फलाने के पास है। उफ़, नहीं आ रहा कोई फ़ोन-वोन--सोचते हुए उसने बाहर आकर बाल्टी उठायी और कपड़ों को सुखाने चल दी। ………….कौन हो सकता है? हर गीले कपड़े को झटकते हुए उसका मन एक नाम लेता और उसे झटक भी देता कि नहीं, उसका नहीं हो सकता। आजकल घंटिया कुछ ज्यादा ही बजने लगी हैं। कहीं किसी बीमा पालिसी वाले एजेंट का ही नंबर न हो ! सुनहरी धुप धीरे-धीरे सुरमई शाम में तब्दील हो गयी। रसोई में सब्जी बनाती मनीषा गीत गुनगुना रही थी कि फिर से घंटिया बजने लगीं। उसने झट-से आंच धीमी की और कमरे में जाकर खिन्न भाव से फ़ोन उठाकर थोड़े रूखे स्वर में कहा, "हेल्लो!" 

उधर से सिर्फ सांसें सुनाई दीं उसका गुस्सा और बढ़ गया। 

“देखिये, आप जो भी हैं, बात करिए या कॉल मत करिए…….हेल्लो…हेल्लो …..देखिये, अब अगर फ़ोन किया तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूँगी।” कहकर जैसे ही उसने फ़ोन रखना चाहा, एक आवाज़ सुनाई दी, “मणि!…"

और हाथ से उसके रिसीवर गिर गया!

मणि! इस नाम से तो मुझे ……….उफ़! मेरा नंबर उसको कहाँ से मिला? हाँ, सांसें भी वही थीं गहरी सी!कभी जिन सांसों से एक पलमें पहचान जाती थी किसका फ़ोन है…जिसके फ़ोन करने के तरीके से वो घंटियों की भाषा पढ़ लेती थी...मिस्ड कॉल की एक घंटी तो 'मिस्सिंग यू', दो घंटी तो 'लव यू', तीन घंटी तो 'कॉल मी'; और आज भूल गयी उन सांसो की थिरकन को!उधर से 'मणि… मणि…' की आवाज़ के साथ 'हेल्लो… हेल्लो' भीसुनाई दिया इस बार तो उसने झूलते रिसीवर को झट-से उठाया,"देखिये, यहाँ कोई मणि नहीं रहती। आज के बाद यहाँ कॉल न किया करें ……।" कहकर रिसीवर को फोन पर पटक दिया; और इधर-उधर देखते हुए अपनी धडकनों को सम्हालने की असफल कोशिश करने लगी।

उसे मंगवाना ही पड़ेगा अब तो कॉलर आईडी वाला फ़ोन।


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