आवारा बादल (12) दुपट्टा
आवारा बादल (12) दुपट्टा
गतांक से आगे
रवि के मन पर उन दोनों घटनाओं का बहुत अधिक असर हुआ था। पहले तो बेला ने जो षड्यंत्र किया था उससे वह सहम गया था। बाद में शीला चाची को सरसों के खेत में यूं उस हालत में देखना और फिर बिहारी का जेल में जाना उसे अंदर तक हिला गया। वो समझ ही नहीं पाया कि आखिर सत्य क्या है? वह जो उसने खेत में देखा था या वह जिसके कारण बिहारी जेल गया था ? क्या ऐसे सत्य कभी बाहर आ पाते हैं ?
सोचते सोचते रवि का घर आ गया। घर पर मृदुला ने बताया कि बद्रीनारायण मामाजी और सलोनी मामीजी आये हैं। रवि को बहुत खुशी हुई यह सुनकर। कितने दिनों से उनसे मिलना नहीं हुआ था उसका। कामकाज की व्यस्तता के कारण वह कहीं जा ही नहीं पाया था बहुत दिनों से। वह तुरंत ड्राइंग रूम में आ गया। वहां पर मामाजी, मामीजी, उनका पोता अभिषेक बैठे हुये थे। रवि ने मामाजी, मामीजी के पैर छुए तो बद्रीनारायण जी ने टोक दिया। "अरे ये क्या कर रहे हो ? इतने बड़े आदमी हो गये हो, अब पैर छूते अच्छे नहीं लगते"।
"मामाजी, मैं चाहे कितना भी बड़ा हो जाऊंगा, पर आपके लिये तो भानजा ही रहूँगा ना। आप मेरे मामाजी, मामीजी ही रहेंगे। इस रिश्ते से बड़ा कोई भी पद कैसे हो सकता है" ? रवि ने उनके पास बैठते हुये कहा।
"तुम्हारी इन्हीं बातों से तो सब तुम्हारे कायल हैं रवि। तुम एक आदर्श व्यक्ति हो। आज के जमाने में भी बड़ों को सम्मान देते हो। सबका ध्यान रखते हो। कौन करता है आजकल यह सब ? सब मतलब के लिए रिश्ते रखते हैं। मतलब निकलने के बाद कोई नहीं पूछता है। यहां तक कि औलाद भी धोखा दे जाती है"। रवि की बातों से खुश होते हुए बद्री नारायण जी बोले।
"समय बदल रहा है मामाजी मगर रिश्ते थोड़ी ना बदलते हैं। खैर, छोड़ो ये सब बातें। ये बताओ कि गांव में कैसे हैं सब ? खेती बाड़ी कैसी है ? यहां कैसे आना हुआ" ?
"सब आनंद हैं। ईश्वर की कृपा है। खूब मौज बहार है गांव में। सरसों और गेहूँ की फसल बहुत बढ़िया है अभी तो। आगे रामजी की इच्छा। आंधी तूफान नहीं आये तो खूब मौज हो जायेगी। अभिषेक का चयन आई आई टी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस में हुआ है। उसके एडमिशन के लिए आये हैं। रामौतार (बेटा) और राधा (बहू) भी आये हैं। वे अभी पास में ही पार्क में चले गये हैं। थोड़ी देर में आते ही होंगे"।
"अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई आपने, मामाजी। अभिषेक ने तो पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होकर भी आई आई टी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस मिलना बहुत बड़ी बात है, मामाजी। गजब। वाह अभिषेक वाह। कमाल कर दिया "। और रवि ने अभिषेक का सिर प्यार से थपथपाया। अभिषेक ने भी रवि के पैर छूकर अपने संस्कारों का परिचय दिया।
रात्रि में सब लोग डिनर लेकर अपने अपने कमरे में सोने चले गये। रवि की आंखों से नींद कोसों दूर थी। मामीजी के आने से दिमाग में पुरानी स्मृतियां उभरने लगीं थीं।
छोटे मामाजी की शादी थी तब वह दसवीं कक्षा में आ गया था। हलकी हलकी दाढ़ी मूंछें आ गयी थी उसके चेहरे पर। लंबाई भी खूब हो गयी थी। पांच फुट नौ इंच का हो गया था वह तब तक और लंबाई अभी बढ़ती ही जा रही थी। स्मार्ट तो था ही वह, लंबे बाल खूब फबते थे उसके ऊपर। स्कूल में सबके आकर्षण का केंद्र था वह।
शादी में दो तीन दिन पहले ही आ गया था वह। तब तक कुछ और भी लोग आ गये थे वहां शादी में। घर में खूब चहल पहल मची हुई थी। मामीजी घनचकरी की तरह घूम रही थी। कभी यहां कभी वहां। फुर्सत नहीं थी उन्हें। आखिर देवर की शादी थी तो घर की सारी जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गयी थीं। रवि भी यथायोग्य मदद कर रहा था। मेहमानों को पानी पिलाना, चाय नाश्ता करवाना, खाना परोसना आदि काम कर रहा था।
सर्दियों के दिन थे। रवि को ठंड लग गई थी। एक गोली लेकर एक कमरे में जाकर लाइट बंद करके दरवाजे औढ़ाकर रजाई में घुस गया था वह। अच्छी नींद आ जाये तो थोड़ा आराम आ जाये। इसलिए वह चुपचाप लेट गया था।
अभी वह लेटा हुआ ही था और नींद भी नहीं आई थी उसे कि अचानक एक व्यक्ति दबे पांव उसके कमरे में घुसा। उसके पीछे पीछे एक और आकृति उस कमरे में घुसी। रवि को बड़ा आश्चर्य हुआ। कौन हो सकते हैं ये दोनों ? क्या कोई चोर हैं ? वह चुपचाप उनकी कारस्तानी देखने लगा। बिस्तरों में ही दम साधे लेटा रहा। लाइट बंद थी इसलिए चेहरे दिखाई नहीं दे रहे थे बस आकृतियां हैं दिखाई दे रही थीं। रवि ने दम साधते हुये उन्हें देखा। ऐसा लगा जैसे दोनों एक दूसरे में गुंथे हुये हैं। ये दोनों चोर तो नहीं हो सकते हैं। ये कर क्या रहे हैं ? उसने गौर से देखा। शायद 'किस' कर रहे थे दोनों। कमरे में चूमा चाटी की आवाजें गूंजने लगी। बहुत अधिक समय तक यदि अंधेरे में रहा जाये तो आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो जाती हैं। रवि की आंखें भी अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थी इसलिए उसे अब साफ साफ दिख रहा था जो कुछ सामने चल रहा था।
रवि ने देखा कि एक आकृति दूसरी आकृति को बेतहाशा चूम रही है। दूसरी आकृति ने भी पहली आकृति को अपनी बांहों में कस रखा है। दूसरी आकृति पहली आकृति के गाल, होंठ, बाल, गर्दन को लगातार चूमे जा रही है और पहली आकृति पर हाथ घुमा रही है। दूसरी आकृति ने पहली आकृति के कपड़े हटाने चाहे तो पहली आकृति ने उसे टोका और फुसफुसा कर कहा
"ये क्या कर रहे हैं आप ? कुछ होश है भी या नहीं ? अगर कोई आ गया तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा मेरा कबाड़ा हो जायेगा"। यह किसी लड़की की आवाज थी।
"कुछ नहीं होगा जानेमन। इतना क्यों घबराती हो ? इन प्यारे प्यारे 'कबूतरों' के दर्शन तो करा दो। बहुत फड़फड़ा रहे हैं ये"। एक पुरुष आवाज ने बहुत धीमे धीमे कहा।
"हट बदमाश। ये भी कोई जगह है यह सब करने की। शादी का माहौल है घर में। कभी भी कोई भी आ सकता है अचानक से। वहां तो कह रहे थे कि बस एक किस करूंगा और यहां आकर बेईमानी शुरू कर दी"। लड़की ने उलाहना देते हुये कहा।
"तुम हो ही इतनी हॉट कि मन वश में नहीं रहता है मेरा। मैं जब भी तुम्हारे इन फड़फड़ाते कबूतरों को देखता हूँ तो मैं पागल सा हो जाता हूँ। अब जल्दी से दर्शन करा दो ना इनके। देखो ना, आंखें कबसे तरस रही हैं" ?
इससे पहले की वह लड़का कुछ करता, लड़की उस लड़के को हल्का सा धक्का देकर बाहर भाग गई। दरवाजा खोलकर जाते समय बाहर बरामदे की लाइट से रवि ने देखा था कि उस लड़की ने पिंक कलर का सूट पहन रखा था। उस लड़की के पीछे पीछे वह लड़का भी बाहर आ गया। लाइट में उसके पैंट का रंग काला दिखाई दिया था।
रवि के होंठों पर मुस्कान खेल गयी। तो यहां पर "प्रेम लीला" चल रही थी। आज तो धन्य हो गया था रवि। उसने तो ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था। ईश्वर भी क्या क्या दृश्य दिखलाता है। मुस्कुरा कर वह बिस्तर से उठा और एकदम से लाइट जला दी। उसने देखा कि वहां पर एक दुपट्टा गिरा पड़ा था। उसने तुरंत वह दुपट्टा उठाया और अपनी जेब में डाल लिया। फिर वापस बिस्तर में आकर वह लेट गया।
थोड़ी देर बाद अचानक उसके कमरे में कोई आया और कुछ ढूंढने लगा। रवि समझ गया था कि यह वही लड़की होगी जिसका दुपट्टा यहां गिर पड़ा था। उसने थोड़ी देर इधर उधर देखा मगर जब उसे वह दुपट्टा नहीं मिला तो वह चली गयी थी।
शेष अगले अंक में....
क्रमशः

