आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

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स्टील की दो फैक्टरी के मालिक आन्नद वर्मा, शहर में अच्छा रूतबा, होनहार इकलौता बेटा रवि। खूब धूमधाम से शादी की बहु भी बराबर की पोजीशन वाले घर से है।। पापा अब आप को काम करने की ज़रूरत नहीं रवि सम्भाल लेंगे, माँ आप भी आराम करिए अब घर को मैं देखूँगी। 

वर्मा जी मैं ना कहती थी हमारी बहु लाखों में एक है। पापा फैक्टरी मेरे नाम कर दिजिए,अगर फैक्टरी मेरे नाम होगी तो काम में आसानी होगी  । हाँ बेटा ये तो सही कहा, ले सम्भाल अपनी ज़िम्मेदारी। कुछ दिन बाद, माँ घर बहु ( राशि ) के नाम कर दो, कभी कोई सरकारी काम हो तो राशि खुद ही सम्भाल लेगी आप इस उम्र में कहाँ परेशान होंगे।

 सब कुछ बच्चो के नाम कर के तीर्थ चले गए दोनों। वापिस आने पर बहू,आज अच्छा सा पका दो बहुत समय हो गया घर का खाना खाए, मेरे पास समय नहीं जो खाना है खुद पका लो, रवि कितनी मेहनत से कमाते हैं आपको तो ऐश चाहिए बस। चुपचाप उल्टे पाँव चल पड़ते हैं दोनों अनजानी राहों पर अपने आत्मसम्मान को बचाए, जहाँ ये राहें ले जाऐं।


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