आत्मरक्षा

आत्मरक्षा

1 min
291


दंगाईयों के डर से सब जगह दहशत का माहौल था। शाम साढ़े सात बजे ही सारे बाजार में दुकानों के शटर गिर गए थे। लोग बिना सामान लिए ही अपने - अपने घरों की तरफ दौड़ रहे थे। मैट्रो ट्रेन के गेट भी बंद कर दिये गए थे। पूरी दिल्ली में अफवाहों का बाजार गर्म था।

मैं भी अपने सामान की ट्रॉली शॉपिंग मॉल में ही छोड़कर घर की तरफ दौड़ रही थी। अचानक मुझे पीछे से आवाज़ आई ," अरे हार्डवेयर की दुकान अभी खुली है .... कम से कम लोहे के डंडे तो खरीद कर रख लें .... क्या पता कब काम आ जायें ? " सभी लोग पागलों की तरह डंडे खरीदने में लग गए।

मैने भी लोहे की दो एंगल और एक लकड़ी का बैट खरीदा लिया।

घर आते ही सब मुझे बड़ी ही आतुर नज़रों से निहारने लगे। मैं उनके चेहरे पर आये हुए भावों को समझते हुए बोली , " ये सब मैं आत्मरक्षा के लिए लाई हूँ .... अब पुलिस और प्रशासन से आम जनता का विश्वास जो उठा चुका है। "

उद्देश्य - यदि समय रहते पुलिस नागरिकों की रक्षा के लिए आगे नहीं आयेगी तो नागरिक खुद अपनी आत्मरक्षा के लिए तैयार हो जायेंगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama