आत्महत्या गंतव्य नहीं, गंतव्य जीवन है
आत्महत्या गंतव्य नहीं, गंतव्य जीवन है
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ये कहानी है आरोहण और उसके बड़े भाई हर्षित की। 1999 के ओडिशा साइक्लोन में उनके माता -पिता ने उन दोनों और कई और लोगों को बचाते हुए अपनी जान गँवा दी थी। उसके बाद से हर्षित और आरोहण को उनके एक अंकल ने अपने साथ रख लिया था। उन्होंने अपने दोनों बेटों को खो दिया था उसी साइक्लोन में।
तबसे हर्षित और उसका भाई उन्ही के साथ रहने लगे थे। कुछ 5 साल का था आरोहण जब एक सड़क दुर्घटना में उसके पैर में काफी चोट लगी थी और उसका पैर काटना पड़ गया था।
हर्षित को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे वो, मात्र 16 साल का ही तो था। जब भी वो उदास हुआ करता तब उसे अपने माता - पिता की बात याद आया करती, वो हमेशा कहा करते थे की मुश्किलें हमें और हमारे मस्तिष्क को और अधिक बलिष्ट बनती हैं। वो हमें शक्ति देती हैं आगे के जीवन व् उसमे आने वाली चुनौतियों से लड़ने के लिए।
उसे ध्यान आता है की कैसे उसके माता- पिता ने अपनी जान गँवा दी थी दुसरो की जान बचने के लिए।
आज भी वो ये सब सोच रहा था और फिर वो अपने की तरफ देखता है अस्पताल के पलंग पर, वो खुद से कहता है की मुझे इसके लिए ही जीना होगा, मेरा भाई विश्व प्रसिद्द खिलाडी (athlete) बनकर ही रहेगा। आरोहण जब तीन साल का था तब टी. वि. में खिलाडियों को दौड़ते देख बहुत खुश हुआ करता था और उनकी तरह भागने का प्रयास भी किया करता था। तभी से उनके पिताजी ने सोच लिया था की वो उसको एक उत्कृष्ट खिलाडी बनाएंगे। अब वही सपना हर्षित को पूरा करना था।
वो अस्पताल में बैठा यही सब सोच रहा था की आरोहण को होश आ जाता है और वो रोता है पैर में दर्द की वजह से। हर्षित जल्दी से उठकर अपने भाई को गले लगाता है और कहता है की कोई बात नहीं 'आरु' वो तुम्हारे पैर में था थोड़ी चोट लग गयी थी तो डॉक्टर ने उस पैर को निकल लिया है अभी इलाज़ के लिए, कुछ समय बाद ठीक होने पर वापिस लगा देंगे।
आरोहण छोटा था, मान लेता है। वो और हर्षित अपने अंकल के साथ घर वापिस आ जाते हैं। आरोहण को दो महीने तक आराम ही करना था। हर्षित अपने भाई को रोज़ बहुत सारे वीडियो दिखाया करता 'ओलिंपिक दौड़' की। आरोहण उन्हें देख कर बहुत खुश होता था। वो अक्सर अपने बड़े भाई से पुछा करता की क्या वो भी भाग पायेगा इन सब की तरह। हर्षित कहता है हाँ हाँ बिलकुल जैसे ही उसका पैर वापिस लगेगा, वो दौड़ पाएगा बहुत तेज़, सबसे तेज़।
हर्षित पहले ही डॉक्टर अंकल से पूछ चूका था कृत्रिम पैर के बारे में और डॉक्टर ने बोला था की हाँ अगर अभी से आदत हो जाएगी आरोहण को तो बड़े होने तक वो उसके वास्तविक पैर की तरह ही लगने लगेगा उसे।
आरोहण को दो महीने बाद कृत्रिम पैर लगाया गया। उसे अच्छा नहीं लग रहा था, वो बार - बार रोता और अपने भाई से बोलता की ये उसका पहले वाला पैर नहीं है, उसे वही चाहिए।
हर्षित ने उसे समझाया की पहले जो उसके पास पैर था उसमे कुछ कमी थी। वो कुछ समय बाद वैसे भी ख़राब होने वाला था तो भगवान ने वो तुमसे ले लिया और उसकी जगह एक नया पैर दिया है जिससे शुरू में तुम्हे परेशानी होगी लेकिन धीरे - धीरे तुम्हे उसकी आदत हो जायेगी और तुम ज़्यादा अच्छे से भाग सकोगे।
आरोहण को काफी तकलीफ होती थी पहले पहले उस पैर के साथ पर धीरे धीरे उसने सीख लिया था उसी के साथ जीना। वो स्कूल जाता तो कुछ बच्चे तो उसका साथ देते पर अधिकतर उसको चिढ़ाया करते। हर्षित उसे समझाया करता की ये सब तब तक है जब तक वो एक अच्छा धावक नहीं बन जाता, पर कुछ पाने के लिए कुछ तो मूल्य देना होगा उसको, बस शायद यही सब सहकर वो मूल्य चुकाया जा सके।
साथ ही साथ वो आरोहण की ट्रेनिंग शुरू करता है अपने साथ, रोज सुबह उसे दौड़ाया करता, उसके खान पान का ध्यान रखा करता। ऐसा कई सालों तक चलता रहा। जब - जब आरोहण गिरता तो हर्षित उसका उत्साह बढ़ाता और उसे याद दिलाता की उसे पापा का सपना पूरा करना है और तब वो फिर उठता और खुशी - खुशी दौड़ा करता।
इस तरह कई साल बीत गए, आरोहण बारवी कक्षा में आ चूका था और अब तक वो कई अन्तर स्कूल प्रतियोगिताएं जीत चुका था। वो दौड़ने में काफी प्रवीण हो चूका था तब हर्षित ने उसे कोचिंग इंस्टिट्यूट में डालने की सोची। कोच सर ने पहले तो कहा की अरे इसके लिए संभव नहीं हो पाएगा पर फिर उन्होंने कहा की पहले वो तीन दिन देखेंगे। और फिर उन तीन दिनों में उन्होंने आरोहण की दृढ़ता और संकल्प देखा और वो तैयार हो गए उसे सिखाने के लिए।
शुरू - शुरू में आरोहण को बहुत परेशानी होती थी, कोच सर ने थोड़ी सख्त कर दी थी ट्रेनिंग। कभी - कभी उसके पैर में दर्द इतना बढ़ जाया करता की वो दो दिन तक उठ भी नहीं पाता था पर फिर भी उसने अपने पापा का सपना पूरा करने के लिए पूरे समर्पण के साथ ट्रेनिंग पूरी की।
और अब वो तैयार था अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने के लिए। वो दोनों हवाई जहाज़ में बैठे थे, आरोहण ऑस्ट्रेलिया में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय दौड़ प्रतियोगिता में खेलने के लिए जा रहा था। हर्षित बहुत खुश था, उसने पापा का सपना जो पूरा कर दिया था, अपने भाई को एक विश्व स्तरीय एथलीट जो बना दिया था। खुश तो आरोहण भी था बहुत पर उसके पैर में बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था। उसने हर्षित को बताया नहीं था।
स्टेडियम में आरोहण तैयार खड़ा था दौड़ने के लिए, वो पलट कर अपने भाई हर्षित को देखता है। हर्षित उसे 'आल द बेस्ट' कहता है। दौड़ शुरू होती है, आरोहण सबसे तेज़ दौड़ रहा था पर ये क्या दौड़ पूरी होने ही वाली थी की अचानक से आरोहण गिर पड़ता है बहुत ज़ोर से। उसके पैर से बहुत ज़्यादा खून बह रहा था। वो अपने पैर को पकड़कर रो रहा था ज़ोर से क्यूंकि उसके ओलंपिक में जाने का सपना जो टूट गया था।
हर्षित दौड़ कर अपने भाई के पास जाता है और उसे अपने गले लगाता है। आरोहण को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। उसकी जंघा में गहरा घाव हुआ था उस कृत्रिम पैर की वजह से।
डॉक्टर हर्षित को बताते हैं की अब आरोहण कभी भी दौड़ नहीं पाएगा। जब -जब वो दौड़ने की कोशिश करेगा, उसका घाव और गहरा होता जाएगा, उसकी जान भी जा सकती है।
हर्षित आरोहण को लेकर वापिस भारत आ रहा था। आरोहण उदास था काफी। हर्षित उससे कहता है की कोई बात नहीं यार होता है कभी -कभी, हम जो चाहते हैं वो हमे नहीं मिल पाता क्यूंकि शायद उस ऊपर वाले ने कुछ और सोच के रखा होता है हमारे लिए और वैसे भी तुमने अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश की थी न। आरोहण कुछ बोलता नहीं है बस मुस्कुरा देता है।
हर्षित उसकी मुस्कुराहट के पीछे का दर्द साफ महसूस कर पा रहा था।
वो दोनो घर वापिस आ जाते हैं। हर्षित को डायरी लिखने की आदत थी बचपन से ही। वो डायरी लिखता और किसी को भी पढ़ने नहीं दिया
करता था,हमेशा अलमारी में बंद करके ताला लगाकर जाता था। उस रात हर्षित काफी देर तक ऑफिस का काम कर रहा था और उसके बाद वो डायरी लिखता है। आरोहण को लगभग एक महीने तक आराम ही करना था। हर्षित ऑफिस चले जाया करता और आरोहण घर में अकेले दौड़ प्रतियोगिताओं के वीडियो देखा करता और अपने सभी जीते हुए मेडल और दूसरे इनाम भी।
वो धीरे- धीरे मानसिक तनाव का शिकार हो रहा था। उसे लगने लगा की अब उसके जीवन में कुछ शेष नहीं रह गया है। वो पापा का सपना भी कभी पूरा नहीं कर पाएगा।
उसे लगने लगा कि उसके जीवन का कदाचित ये अंत है। वो एक दिन सोचता है कि उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए क्यूंकि अब जब ओलंपिक में जा ही नहीं पाऊंगा तो सब लोग मज़ाक उड़ाएंगे और भैया को भी बहुत दुख होगा। हां यही सही है, मुझे
मर जाना चाहिए।
वो एक पत्र लिख कर जाना चाहता था अपने भैया के लिए। वो दराज से पेपर निकालता है पर ये क्या उसे वहां हर्षित की डायरी
मिलती है जो शायद कल उसने रात में देर हो जाने और थकान कि वजह से वहीं रख दी थी।
आरोहण सोचता है कि आज तो वो ये डायरी पढ़ ही सकता है। वो देखता है उस डायरी में, उसमे कई यादें थी, बचपन की,
मम्मी पापा की, जहां जहां वो घूमने गए थे, और आरोहण और हर्षित की भी। हर्षित रो रहा था सब याद करके।
उसमे एक जगह लिखा था कि पापा मै आपको वचन देता हूं कि में अपने भाई को विश्व स्तरीय धावक बनाऊंगा।
ये पढ़ने के बाद तो आरोहण और परेशान हो जाता है और सोचताहै कि अब तो उसे मर ही जाना चाहिए क्यूंकि ये तो अब कभी होने वाला नहीं था। वो सोचता है कि क्यूं ना वो इसी डायरी में कुछ लिख दे।
वो आगे पेज पलटता है, उसमे हर्षित ने पापा के नाम एक चिट्ठी रखी थी जो शायद उसने कल रात ही लिखी थी।
उसमे लिखा था पापा जब उस दिन लहरें आपको हमसे दूर कर रहीं थीं न और आपने आशा भरी नज़रों से मेरी ओर देखा था, मैं समझ गया था पापा की आप क्या कहना चाह रहे थे। आपकी आँखों में देख पा रहा था की आप मुझे आरोहण की ज़िम्मेदारी सौंप रहे थे।
आपका बेटा विश्वस्तरीय धावक बन चुका है पापा बन चुका है।
पर शायद आपको ये पता नहीं है की जब आपने ये सोचा था तब बात कुछ और थी लेकिन आपके जाने के बाद मेरे छोटे भाई ने अपना पैर खोकर भी बहुत मेहनत
और कष्ट सहकर भी आपकी इच्छा पूरी की है पापा।
हार जीत तो चलती रहती है न पापा, पर मुझे पता है की भगवान् मेरे भाई से कुछ और बड़ा कराना चाहते हैं जो शायद उसके लिए बहुत अच्छा होगा।
डॉक्टर ने कहा है की मेरा भाई अब कभी भी तेज़ दौड़ नहीं पायेगा, तो क्या हुआ पापा, बहुत से लोग हैं इस दुनिया में जो चल भी नहीं सकते।
और फिर मेरा भाई कमज़ोर नहीं है, आप देखना वो जल्द ही कुछ बड़ा करेगा। मुझे पता है की अभी वो बहुत परेशान है, तो क्या हुआ परेशान हो सकते हैं न बस ज़रूरी है जल्दी से उससे बाहर निकल आना और उसके बड़े भाई ने इतना बलवान बनाया है उसे मस्तिष्क से की वो जल्दी ही इस सब से बाहर निकल कर एक नयी शुरुआत करेगा।
आप चिंता न करना पापा, मैं जानता हूँ अपने भाई को, उसे दुनिया क्या कहेगी से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और वो कभी भी कुछ भी गलत करने की सोच ही नहीं सकता।
क्यूंकि वो जानता है की उसका बड़ा भाई उससे कितना प्रेम करता है और सबसे बड़ी बात मैं ये जानता हूँ की मेरा छोटा भाई मुझसे कितना प्रेम करता है। वो मरने की बात कभी सोच भी नहीं सकता क्यूंकि वो मुझे दुखी नहीं देख सकता।
मेरा प्यारा भाई आरोहण और मैं एक दूसरे के बिना अधूरे हैं पापा, आप देखना हम दोनों मिलकर एक नयी शुरुआत करेंगे और फिर
जल्द ही एक और चिट्टी लिखूंगा मैं आपको। आपका हर्षित।
आरोहण को जैसे ज़िन्दगी मिल गयी थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, वो सिर्फ रो रहा था ज़ोर-ज़ोर से उस चिट्ठी को अपने ह्रदय से लगाए। उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करने जा रहा था।
वो हर्षित को फ़ोन करता है और उससे कहता है की भैया मैं तैयार हूँ एक नयी शुरुआत के लिए। हर्षित बहुत खुश होता है और शाम को घर आकर ज़ोर से अपने छोटे भाई को गले लगाता है। अब आंसू दोनों की पलकों में थे पर इस बार वो ख़ुशी के आंसू थे।
सब ज़ोर से ताली बजा रहे थे आरोहण की कहानी सुनकर। आरोहण एक सॉफ्टवेयर कंपनी का मालिक है और वो प्रेरणादायक बैठक ले रहा था अपने कर्मचारियों के साथ। सबकी आँखों में आंसू थे और आँखें तो उसकी भी नाम थी।
आज उसे समझ आया था बिंदुओं के जोड़ (कनेक्टिंग द डॉट्स) का खेल। वो सारे बिंदुओं को जोड़ कर देख रहा था, मम्मी पापा की मृत्यु, उसके पैर में चोट लगना, कृत्रिम पैर, वो ऑस्ट्रेलिया में रेस में हार जाना, वो डॉक्टर का उसे दौड़ने के लिए मना करना, उसका आत्महत्या के बारे में सोचना और फिर उसके बड़े भाई की चिट्ठी का मिलना।
वो सोच रहा था की यदि ये सब नहीं हुआ होता तो आज वो जो है वो नहीं बन पाता न।
वो समझ चकका था की जीवन में सब कुछ हमारे अनुसार नहीं होता, हम सिर्फ पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मेहनत कर सकते हैं बाकी जीवन संघर्ष का नाम है और जीवन जैसी भी चुनौतियां आपको दे, आप बस उन्हें स्वीकार करते जाओ और तब देखना उन चुनौतियों का हल अवश्य ही निकल आएगा। वो जान गया था की जीवन जीने का नाम है, क्यूंकि मृत्यु तो हर पल वैसे भी पास आ रही है।
और सबसे अधिक महत्वपूर्ण - वो जान चुका था की " आत्महत्या गंतव्य नहीं , गंतव्य जीवन है।