अनुकरणीय
अनुकरणीय
सास ससुर से बड़ी परेशान होकर निशा अपने मायके आयी थी ,प्रसन्नता और चैन था उसके हृदय को की अब कुछ दिन तो अच्छे से बीतेंगे उसके।
एक दो दिन तो सब ठीक रहा, बड़े दिन बाद जो मायके गयी थी। उसके भैया - भाभी भी बड़ी ही प्रसन्नता से मिले उससे।कुछ दिनों तक सब मिलकर घूमने - फिरने भी गए। निशा की भाभी उसी की पसंद के व्यंजन बनाती ।कुछ ही दिनों में भाभी का अपने माँ - पिताजी के लिए व्यवहार देख उसे अपने उसे अपने घर की याद आने लगी जिसको शायद उसने अभी तक अपना माना ही नहीं था।
उसे याद आने लगा की कैसे उसके ससुर उसके थोड़े से बीमार होने पर ही , दुनिया भर के देसी इलाज उसके लिए तुरंत शुरू कर देते थे ,वो डॉक्टर के पास जल्दी से ले जाने को अपने बेटे से भी कहते थे।वो परेशान हो जाते थे उसको बीमार देखकर। बार - बार उसके सास-ससुर उससे पूछते की बेटा अब तबियत ठीक है।
उसे याद आने लगा सासु माँ का उससे उसके प्रिय व्यंजन के बारे में पूछना। क्या खाने का मन है बेटा , बता मैं वही बना दूंगी तेरे लिए। उसे याद आता है सास ससुर का बहु के लिए अपने ही बेटे को डांटना ,
वो सासु माँ का सदैव उसके लिए कुछ न कुछ लेकर आना जब कभी भी वो मार्किट जाती थीं।
उसे याद आ रहा था की कैसे उसने ससुराल से मिले किसी भी उपहार का कभी ध्यान नहीं रखा , उसे तो माँ का ही दिया पसंद आता था।
उसे याद आ रहा था की उसको कहीं भी आने जाने के लिए कोई रोक टोक नहीं थी उसके ससुराल में। वो कुछ भी पहन सकती थी ,मॉडर्न कपड़े भी , कोई रोक टोक नहीं थी उसके लिए
वो बस इतना कहते थे की बताकर जाओ और यदि कभी उन्हें कुछ गलत लगता , ज़्यादा रात या गलत समय में बाहर जाना तो बस समझाया करते थे , पर क्या ये वो उसकी सुरक्षा और उनके हृदय में मेरे लिए प्रेम की वजह से नहीं करते थे।
उसे याद आता है की कैसे उसे अपने सास - ससुर की मामूली सी रोक टोक भी इतनी बुरी लगती थी की जैसे वो हर समय उसे परेशान करने के लिए ही ऐसा करते हैं। आज उसे याद आ रहा था की ये सब टोकते तो वो अपने बच्चों को भी हैं ऐसे ही जैसे मुझे टोकते हैं।
आज उसे अपनी सासु माँ का रुआंसा चेहरा याद आ रहा था , जब वो अपने मायके आ रही थी। तब तो उसे लग रहा था की सारा काम खुद करना पड़ेगा , इसलिए ऐसा चेहरा बनाया है। पर आज उसे उनके चेहरे की उदासी में छुपा अपने लिए प्यार दिख रहा था।
वो सोच रही थी की ठीक है न मैं सोचती हूँ की वो मुझे अपनी बेटी जैसा नहीं समझते,
पर क्या मैंने उन्हें अपने माता पिता जितना सम्मान दिया है ?!!!
आज अपनी भाभी को अपने जैसा जानकार निशा बहुत दुखी थी। वो जल्दी से लौट आना चाहती थी अपने माता- पिता , अपने सास- ससुर के पास और उन्हें बताना चाहती थी की हाँ मैं करती हूँ आपसे ढेर सारा प्रेम और मुझे आपकी बहुत याद आयी वहां, हाँ मुझे पता है हर समय तो बीमार रहते हैं आप , मेरे बिना ज़्यादा दिन अपना ध्यान नहीं रख पाएंगे।
वो कुछ ही दिनों में अपने घर वापिस लौट आती है। घर में सब बहुत प्रसन्न होते हैं। निशा रात को पूछती है , मम्मी क्या बनाऊं खाने में और उधर से आवाज़ आती है। निशा तुझे इतनी बार कहा है अपने कपडे सही से रख दिया कर अलमारी में। निशा हंस रही थी मन ही मन और जाकर मम्मी के गले में हाथ डालकर कहती है की अरे मम्मी अगर कुछ उल्टा पुल्टा काम ही नहीं करुँगी तो घर में कोई बात ही नहीं होगी करने को। और मैं आपकी प्यारी सी डांट कैसे सुनुँगी।
माँ और निशा दोनों ही हंस रहे थे। माँ कह रहीं थी की तू इतने दिन बाद आयी है , ला बता आज मैं बनाती हूँ जो तू कहे। अरे नहीं आज तो मैं आपकी पसंद का खाना बनाउंगी , इतने दिनों से मेरे हाथ का बना खाया ही नहीं आपने।
उधर ससुर जी आवाज़ लगा रहे थे , अरे भाई तुम दोनों बात ही करती रहोगी की खाना भी दोगी।
अब क्यूंकि निशा इस घर को अपना घर समझने लगी थी तो घर को अच्छे से साफ़ रखा करती बिना किसीके कहे।मन से अपना चुकी थी वो अपने घर को। पहले जहाँ उसे सिर्फ अपनी माँ से बात करना पसंद था , आज वही अपनी माँ के फ़ोन आने पर उनसे कह रही थी , मेरी मम्मी के सर में दर्द हो रहा है बहुत , मैं उनके सर में तेल लगाने के बाद आपसे बात करती हूँ।
निशा समझ चुकी थी की ये छोटी -मोटी नोक- झोंक कोई विशेष महत्व नहीं रखती इतने अनमोल संबंधों के सामने। वो बड़े हैं , भगवान् ने उन्हें मुझसे बड़ा बनाया है , इतना कुछ और कभी कभी तो इससे भी कहीं ज़्यादा बचपन में मम्मी-पापा सुना दिया करते थे। पर वही न , कल तक इन्हे मम्मी - पापा माना ही नहीं था। इसलिए सब बुरा ही बुरा था पर आज जब दिल से सास - ससुर को मम्मी और पापा माना है तबसे तो कुछ बुरा लगता ही नहीं।
निशा ने थोड़ा सा बदलाव स्वयं में लाकर दो घर संवार दिए थे। वो अपनी मम्मी और भाभी को भी समझाया करती की वो भी आपस में बेटी और माँ बाप जैसा सम्बन्ध रखें , धीरे -धीरे सब अच्छा होने लगा था। निशा आज स्वयं जब अपनी बहु को घर लायी है तो उसे ये कहानी सुनाकर बता रही थी की संबंधों में कमी निकालते रहने से कुछ हाथ नहीं लगता। एक ही जीवन है , इसे जितना हंसी ख़ुशी जी लिया जाए वही जीवन का सार है।