आस्था का दिप
आस्था का दिप
आस्था का दीप ही आम-जन लोगों के काम आता है। जब विकट से विकट परिस्थिति हो तो कुछ समझ नहीं आता. दिमाग काम नहीं करता. उस वक्त सिर्फ एक ही बात ध्यान आता है। ईश भक्ति ... सत्यनारायण स्वामी की जय
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मिनी और विजय डाक्टर के चक्कर काट-काट के थक चुके थे। फिर भी उन्हें कोई संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी।
अब वो अस्पताल से घर आये.....
पास में ग्रहप्रवेश का कार्यक्रम चल रहा था मतलब तैयारी हो रही थी।
तभी उनके यहां का बेल बजा ...
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो योनः प्रचोदयात्।
मिनी-
ने दरवाजा खोला...
उन्हें भी निमंत्रण आया आज 10 बजे सत्यनारायण का कथा है।
आप लोग सहपरिवार आना हमें बहुत खुशी होगी।
हम आप के पड़ोसी होने वाले है।
मिनी - जरूर आएंगे।
मिनी सारा काम खत्म कर के उस पूजा में शामिल हो गई कथा सुनी प्रसाद लिया इधर - उधर की बाते हुई। और अपने घर आ गई।
विजय -
दफ्तर से आने के बाद मंदिर जाते थे।
रोज की तरह इस बार भी वो आये।
स्नान किया और मंदिर को निकल रहे थे।
मिनी -
अजी सुनो मैं भी आपके साथ चलती हु।
विजय -
आश्चर्यजनक हो गया अरे वाह तुम मंदिर जाओगी ??
करीब 3 से 4 बार पूछा --
तुम मंदिर जाओगी मेरे साथ ????
आज सूरज कहां से निकला।
अचानक से भाव-भक्ति कैसे जग गया मेरे स्वीट हार्ट के मन में
मिनी -
क्या कह रहे हो ..?
जैसे मैं पूजा पाठ ही नहीं करती।
विजय -
अरे पागल वो बात नहीं है। कभी भी तू मेरे साथ किसी मंदिर में नहीं जाती तो लगा ये सूरज आ कहा से निकला है।
कोई बात नहीं चल आ चलते है।
मिनी और विजय --
पैदल अपने शहर के महामाया मंदिर गए। जाते जाते उसने रास्ते भर सत्यनारायण के कथा के बारे में उन्हें सुनाया। और प्रसाद को उसने अपने बैग में रखा था। वहां मंदिर में जाकर पूजा-पाठ कर के थोड़ी देर बैठने के लिए जगह ढूंढ रहे थे।
पंडित ने आवाज लगाई आप दोनों यही बैठे सकते हो।
और दोनों पंडित के बगल में ही बैठ गए।
मिनी - प्रसाद निकाल के अपने पति और उस पंडित को दिया।
पंडित - बेटी ये क्या प्रसाद है। मैं बाद ग्रहण कर लूंगा। आज मेरा उपवास है।
मिनी - सत्यनारायण स्वामी की कथा थी अपने घर में बगल में
पंडित - ये सुनकर तुरन्त ही "बेटी" हाँ वो प्रसाद दो।
मिनी - पंडित जी आपका उपवास टूट जाएगा।
पंडित - नहीं बेटी प्रसाद ग्रहण नहीं किया तो जरूर कुछ अनर्थ हो जाएगा।
मिनी - हाँ मैंने उस कथा में सुना है।
पंडित - उपवास थे पर उन्होंने उसे मुँह से ग्रहण नहीं किया बल्कि अपने सिर में डाल लिए। ऐसा भी करना प्रसाद ग्रहण करने के समान होता है। ये बात उसने मिनी को बताई।
मिनी - सारा कुछ अब उस पंडित से पूछ रही थी। मिनी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी और पंडित की बातों को गौर से सुन रही थी। उधर उसके पति विजय बस मिनी को और पंडित को फिर मिनी को फिर पंडित को ऐसे ही टका - टक
टका- टक देख रहे थे।
पंडित - पूरी विधि , कथा और पूजा का समान बताया। और कहाँ आप इस पूजा को कभी भी कर सकते हो।
इससे घर मे सुख - शांति समृद्धि आती है। दोष दूर होते है।
कष्ट से मुक्ति मिलती है। पुत्र /पुत्री की चाह रखने वालों को
इस कथा-पूजा को करना चाहिए। वैसे तो इस पूजा को कभी भी कर सकते है। पर जगन्नाथ स्वामी की जब रथ यात्रा होती है। उस दिन को सत्यनारायण स्वामी की पूजा का विशेष महत्व है। उस तारीख को हम पुरोहित खाली नहीं होते उस तिथि में हम पुरोहितों को 5 से 7 घर जाकर ये पूजा संम्पन करनी होती है।
मिनी -- पंडित जी से
4 रोज के बाद ही तो ये जगन्नाथ यात्रा पर्व है। तो पंडित जी क्या आप उस दिन ये पूजा सम्पन्न कर देंगे।
पंडित - क्यो नही बेटी मेरा तो यही काम है।
कितने बजे रखने की सोच रही हो।
मिनी - 11 बजे
पंडित - ठीक है बेटी कुछ समान लिख देता हूं सब तैयारी कर देना ये नंबर रख लो।
विजय - पंडित जी को दक्षिणा देता है।
पंडित -
नहीं लेते .. ये रखो बेटा मैं ये पूजा पैसे को लिए नही करता। आस्था बनी रहे और आप जैसे का भला होता रहे।
जो दुःख में होते है उन्हें उनसे कुछ निजात मिल सके इस लिए करता हूँ। पुरोहित हाँ पूजा सम्पन्न होने के बाद दोगे तो लूंगा।
वो भी इतना नहीं सिर्फ 21 रुपये ...
साथ में मुट्ठी भर चावल, दाल, मिर्च, आलू,
अपनी इच्छा से जो हो सके वो जरूरी नहीं की ये सब ही..
जब आप की मन्नत पूरी हो जाये तो 21 पुरोहित को बुलाकर भोज-वस्त्र का दान करना ...
विजय -
जी पंडित जी ..!
अब मिनी और विजय हँसी खुशी घर लौट आये।
जगन्नाथ यात्रा के दिन पूजा हुई मिनी के घर विजय ने दफ्तर से छुट्टी ली सब अपने दफ्तर के मित्रों को बुलाया। पड़ोसी ,सगे - सम्बंधि आये।
पूजा अच्छे से हुआ ...
पंडित -- कथा पूजा की पूरी विधि सब भक्ति को बताई जो जो यहां कथा सुनने आया था। सत्यनारायण स्वामी की महिमा।
और उससे जुड़ी हर एक पहलू की कहानी। सब के मन मे उत्साह ज्ञान और खुशी का संचार हो गया। घर का वातावरण मन्त्रो से गूंज रहा था। सब लोग मंत्र मुग्ध हो गए।
कितने लोगों ने उसके बाद पंडित पुरोहित को कथा करने के लिए बुलाने लगे। पुरोहित की दरिद्रता समाप्त हो गई।
उधर ---विजय / मिनी
उन्हें भी एक वर्ष बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
उसके 3 साल बाद एक पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई।
ये विज्ञान इस चमत्कार को नहीं मानता पर जब अंत आता है तो विज्ञान भी यही कहता है। सब ऊपर वाले कि मर्जी।
मन्नत पूरा होने के बाद पुरोहित को भोज - वस्त्र दान किये।
और पेड़े की मिठाई बाटी गई। ऐसा पुत्री की प्राप्ति के बाद भी मिनी और विजय ने किया। वो साल में 4 बार ये कथा आज भी करवाते हैं।
सत्यनारायण स्वामी की जय हो।
सीख -
(1*) अंधविश्वास मतलब ढोंगी बाबा के चंगुल में फंसना।
इसका अर्थ से नहीं की आस्था को ही अंधविश्वास कहां जाए।
(2*) विज्ञान / वैज्ञानिक भी चमत्कार को नमस्कार करते है। पर विज्ञान / वैज्ञानिक इस चमत्कार को नहीं मानता। इसे विज्ञान के तरीके से देखते है।
(3*) अगर आप अजीब परिस्थिति में फंस जाए तो ईश्वर का सहारा होता है।
ईश्वर पर भरोसा रखो। भाग्योदय होगा ही..!