Vimla Jain

Tragedy Action

4.3  

Vimla Jain

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आशा का सवेरा ,बीमार मां का संवेदनात्मक पत्र

आशा का सवेरा ,बीमार मां का संवेदनात्मक पत्र

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प्रस्तावना

कभी-कभी बच्चे बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, पर बीमार मां , पिता को देखकर के भी यह नहीं सोचते कि हम उनकी मदद करें।

 वह अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं।

 ऐसा ही उस बीमार मां के साथ हुआ तो उसने अपने बच्चों को पत्र लिखा।

 यह किसी के साथ भी हो सकता है। उसको आशा ठीक ही बच्चे समझेंगे 

आशा का सवेरा 

 एक बीमार मां का अपने पुत्र को संवेदनात्मक खत जो मां यह सोच रही है, उसको यह आशा है कि मेरा इस आशा का सवेरा जरुर आएगा ।और मेरे बच्चे मेरी देखभाल करेंगे।

प्रिय पुत्र अंकित

 हमेशा खुश रहो।

 मैं सोचती थी, कि मेरी बीमारी की बात सुनकर, बीमारी में से वापस निकल कर घर आने पर, जबकि डॉक्टर ने मेरे को 3महीने का टाइम दिया है।

 तुम लोग थोड़ी तो मेरी देखभाल करोगे ।

मगर मैं ग़लत थी।

 मेरा आशा का सवेरा कभी आया ही नहीं।

पुत्र तुमने कभी सोचा है तुम रोज कविताएं लिखते हो ।

कभी मेरे को समर्पित करते हो। अभी तो तुम पूरा का पूरा एक बुक लिख रहे हो जो तुम मेरे को समर्पित करना चाहते हो। जो मां को समर्पित करना चाहते हो।

उसमें तुम अपनी संवेदनाएं लिख रहे हो ।

मगर जो तुम्हारे पास में पड़ोस के कमरे में सो रही और गिरते पड़ते घर के काम करती ।तुम्हारे लिए खाना बनाती तुम्हारा सब काम करती, और थकने पर सो जाती ।

उस मां के बारे में सोचा है ,कोई आता है तो घंटी बजने पर दरवाजा भी मुझको ही खोलना पड़ता है।

 जबकि तुम दोनों बेटे घर में होते हो।

 मगर तुम पूरी रात तो लिखते हो और सुबह पूरे दिन सोते हो और यह चैक करते हो कि तुम्हारे को कितने लाइक मिले हैं, और तुम्हारे लेखन पर कितनी वाहवाही मिली है। 

अरे लिखना एक अलग बात होती है।

 मुझे तो ऐसे बेटे चाहिए जो बीमारी में कम से कम मुझे इतना तो पूछे कि मां तुमने खाना खाया या नहीं।

 तुम्हारा सिर तो नहीं दुख रहा है।

 लाओ दबा दूं ,तुमने दवाई ली या नहीं ली।

 मैं तुम्हारे काम में मदद कर दूं। मैं दरवाजा ही खोल दूं माना कि छोटा वाला तो एकदम बेपरवाह है .मगर मैंने तुमसे ऐसी ही आशा नहीं रखी थी। तुम तो उससे भी ज्यादा बेपरवाह निकले।

 तुम्हारे पिताजी बाहर गए हैं। और तुम लोग तो अपने कमरे में ही सोते रहते हो।

 भले कुछ भी हो जाए। तुमको खाना अच्छा नहीं लगा, तुमने अपने लिए बाहर से ऑर्डर कर लिया। 

पर जो मैंने इतनी मेहनत से खाना बनाया है गिरते पड़ते, बहुत परेशान होकर के उठकर के धीरे-धीरे कमजोरी में फ्रिज में भी मुझे ही रखना पड़ता है।

तुमने कभी सोचा है कि मां उठ नहीं पाती है।

 इतना मुश्किल से सब कर रही है तो हम उसकी मदद करें ।नहीं तुम लोग इतने स्वार्थी हो गए हो, कि तुमको अपना ही दिखता है बाकी कुछ नहीं ।अपने रोजमर्रा के काम भी तुम अपनी मरती मां के ऊपर डाल कर के तुम्हारे मनपसंद काम में लेखन में व्यस्त रहते हो ।

ऐसी संवेदनाएं ऐसी लेखन का क्या फायदा ।

बेटे ने सुबह उठकर अपने मां का ईमेल देखा तो जैसे जैसे उसने ईमेल पढा और से उसकी आंखों में से पानी आने लगा और उसकी आंखों के सामने सारे दृश्य में लगे जो ज्यादतियाँ उन्होंने अपनी मां बीमार के साथ करी थी।

 मां को हमेशा की तरह टेकन फॉर ग्रांटेड ले लिया था कि वह तो सब काम कर सकती है। ठीक हो या बीमारी में उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि डॉक्टर ने मां को 3 महीने का टाइम दिया है ।

3 महीने बाद क्या होगा। और रोते रोते वह अपनी मां के पास जाता है और उनके पांव में बैठ जाता है ,उनसे माफी मांगता है। और वही पर सो जाता है मां उसके सिर पर हाथ फेर रही होती है।

 उसको मां के आंचल में सुकून की नींद आती है। 

सुबह जल्दी उठकर के मां के लिए दूध और नाश्ता लेकर आता है और बड़े प्यार से मां को खिलाता है। 

मां के लिए आशा का सवेरा होता है ।

वह बहुत खुश होती है। आंखों में आशा की चमक दिखाई देती है कि वह ठीक हो जाएगी



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