आलेख: नर्मदा ~ डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
आलेख: नर्मदा ~ डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
माॅं नर्मदा तथा प्राकृतिक वनस्पति और वन्यजीव।
"सृष्विन्दु सिन्धु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं
द्विषत्सु पापजातजात करिवारी संयुतं।
कृतांतदूत कालभूत भीतिहारी वर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवि नर्मदे।।
नर्मदा नदी पर ही नर्मदा पुराण है ! अन्य नदियों का पुराण नहीं हैं !
नर्मदा अपने उदगम स्थान अमरकंटक में प्रकट होकर, नीचे से ऊपर की और प्रवाहित होती हैं, जबकि जल का स्वभाविक हैं ऊपर से नीचे बहना !
नर्मदा जल में प्रवाहित लकड़ी एवं अस्थिय कालांतर में पाषण रूप में परिवर्तित हो जाती हैं !
जब गंगा नदी नहीं थी, तब भी नर्मदा नदी थी। जब हिमालय नहीं था, तभी भी नर्मदा थी। नर्मदा नदी किनारों पर नागर सभ्यता का विकास नहीं हुआ तब नर्मदा नदी दोनों किनारों पर तो दंडकारण्य के घने जंगलों की भरमार थी। पहले नर्मदा नदी के तट पर उत्तरापथ समाप्त होता था और दक्षिणापथ शुरू होता था।
नर्मदा नदी तट पर मोहनजोदड़ो जैसी नागर संस्कृति नहीं रही, लेकिन एक आरण्यक संस्कृति अवश्य रही। नर्मदा नदी के तटवर्ती वनों मे मार्कंडेय, कपिल, भृगु, जमदग्नि आदि अनेक ऋषियों के आश्रम रहे। यहाँ की यज्ञवेदियों का धुआँ आकाश में मंडराता था। ऋषियों का कहना था कि तपस्या तो बस नर्मदा तट पर ही करनी चाहिए।
इन्हीं ऋषियों में से एक ने नर्मदा नदी नाम रखा, " रेवा "। रेव् यानी कूदना। उन्होंने नदी का चट्टानों में कूदते फांदते देखा तो मेरा नाम "रेवा" रखा।
एक अन्य ऋषि ने नाम "नर्मदा " रखा। "नर्म" यानी आनंद। आनंद देनेवाली नदी।
नर्मदा भारत की सात प्रमुख नदियों में से एक हैं। गंगा के बाद नर्मदा का ही महत्व है। पुराणों में जितना नर्मदा पर लिखा गया है उतना और किसी नदी पर नहीं। स्कंदपुराण का "रेवाखंड " तो पूरा का पूरा नर्मदा को ही अर्पित है।
"पुराण कहते हैं कि जो पुण्य, गंगा में स्नान करने से मिलता है, वह नर्मदा नदी दर्शन मात्र से मिल जाता है।
य़ह एक नदी है,पर इसके रुप अनेक हैं। मूसलाधार वृष्टि पर उफन पड़ती हैं,तो गर्मियों में बस सांस भर चलती रहती है।
प्रपात बाहुल्या नदी है। कपिलधारा, दूधधारा, धावड़ीकुंड, सहस्त्रधारा इसके मुख्य प्रपात हैं।
ओंकारेश्वर नर्मदा नदी तट का प्रमुख तीर्थ है।य़ह कहना कठिन है कि कहां अंत है और कहां समुद्र का आरंभ? पर आज स्वरुप बदल रहा है। नर्मदा नदी के तटवर्ती प्रदेश बदल गए हैं कई बांध बांधे जा रहे हैंl
बने बांध भूखे प्यासे बाढ़ से त्रस्त लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं सहीकहा गयाहै:=
त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे...!
"सौंदर्य की नदी नर्मदा
अमृतस्य नर्मदा"
पुराणों व धर्मग्रंथों में नर्मदा अवतरण जानकारी निम्नलिखित है:=
माघ शुक्ल सप्तमी/अष्टमी तिथि
नर्मदा अवतरण दिवस
___
जिसे रथ-सप्तमी भी कहते हैl
नर्मदा नदी का प्रत्येक तट शिव क्षेत्र कहलाता है।
नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्नान, दान, पूजन करना अधिक पुण्यदायी माना गया है।
नर्मदा नदी के तीर्थ वर्जित स्थान में भी स्नान करने पर अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।
नर्मदा नदी के दोनों तटों पर एक कोस के भीतर जितने भी स्वयंभू देवता हैं, उन सब को सिद्धि दायक जानना चाहिए। (स्कन्द पुराण)
नर्मदा जी के चरण अमरकंटक पर्वत पर।
गुल्फ अर्थात पाद संधि मंडला में।
घुटने भेड़ाघाट में, जहां त्रिपुरासुर ने भी घुटने टेके थे।
कटि ( कमर) नेमावर - (सिद्धनाथ) में।
नाभि ॐकारेश्वर में।
उदर महेश्वर में। ह्रदय शूलपाणेश्वर में।
मस्तक भृगु क्षेत्र ( भड़ौच) है।
मां नर्मदा की परिक्रमा ॐकारेश्वर के समीप 24 अवतार तीर्थ से प्रारम्भ की जाती है और यहीं परिक्रमा क्रम पूर्ण किया जाता है। इस कल्प के आरम्भ में आज के दिन भगवान सूर्य रथ पर सवार हुए थे। इस दिन सूर्य पूजन का अत्यधिक महत्त्व होता है।
शुंग वंश
–
“दिव्यावदान” व तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र का राज्य नर्मदा तक फैला हुआ था. पाटलिपुत्र. अयोध्या और विदिशा उसके राज्य के मुख्य नगर थे. विदिशा में पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र को अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया. अयोध्या के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये. वहाँ उसने धनदेव नामक व्यक्ति को शासक नियुक्त किया. नर्मदा नदी के तट पर अग्निमित्र की महादेवी धारिणी का भाई वीरसेन सीमा के दुर्ग का रक्षक नियुक्त किया गया था.
विदर्भ से युद्ध
__
विदर्भ में यज्ञसेन ने एक नए राज्य की नींव डाली थी. वह मौर्य राजा वृहद्रथ के सचित का साला था. इससे प्रकट होता है कि वह पुष्यमित्र के विरुद्ध था. पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने यज्ञसेन के चचेरे भाई माधवसेन से मिलकर एक षड्यंत्र रचा. इसलिए यज्ञसेन के अन्तपाल ने माधाव्सें को पकड़ लिया. इस पर अग्निमित्र ने वीरसेन को यज्ञसेन के विरुद्ध भेजा. वीरसेन ने यज्ञसेन को हरा दिया. इस पर यज्ञसेन को अपने राज्य का कुछ भाग माधवसेन को देना पड़ा. इस प्रकार विदर्भ राज्य को पुष्यमित्र का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा.
यूनानियों का आक्रमण
पतंजली के महाभाष्य से दो बातों का हमें पता चलता है –
पतंजलि ने स्वयं पुष्यमित्र के लिए अश्वमेध यज्ञ कराये
उस समय एक आक्रमण में यूनानियों ने चित्तौड़ के निकट मध्यमिका नगरी और अवध में साकेत का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया.
दुष्य, पराक्रमी यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया. संभवतः यह आक्रमण उस समय हुआ जब पुष्यमित्र मौर्य राजा का सेनापति था. संभव है कि इस युद्ध में विजयी होकर ही पुष्यमित्र बृहद्रथ को मारकर राजा बना हो. कालिदास ने यूनानियों के एक दूसरे आक्रमण का वर्णन अपने नाटक “मालविकाग्निमित्र” में किया है. यह युद्ध संभवतः पंजाब में सिंध नदी के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इस युद्ध में यूनानियों को हराया. शायद यह युद्ध इस कारण हुआ हुआ हो कि यूनानियों ने अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया हो. सभवतः यह यूनानी आक्रमणकारी, जिसने पुष्यमित्र के समय में आक्रमण किया, डिमेट्रियस था. इस प्रकार हम देखते हैं कि पुष्यमित्र ने यूनानियों से कुछ समय के लिए भारत की रक्षा की. यूनानियों को पराजित करके ही संभवतः पुष्यमित्र ने वे अश्वमेध यज्ञ किये जिनका उल्लेख घनदेव के अयोध्या अभिलेख में है.
“नर्मदा नदी के हर पत्थर में है शिव, आखिर क्यों ?”
_____
नर्मदेश्वर शिवलिंग के सम्बन्ध में एक धार्मिक कथा है –भारतवर्ष में गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती ये चार नदियां सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें भी इस भूमण्डल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है। प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब नर्मदाजी ने कहा–’ब्रह्मन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।’ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा–’यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है। ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। भगवान शंकर उन पर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब नर्मदा ने कहा–’भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे। नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले–’नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं, परन्तु तुम दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली होगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा।’ भगवान शंकर उसी लिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गयीं। इसलिए कहा जाता है–‘नर्मदा का हर कंकर शंकर है।
एक बार नारद जी विन्ध्य पर्वत पर गये। विन्ध्य ने नारद की खूब सेवा किया, उसे यह अभिमान था कि मेरे यहाँ सब कुछ है। नारद ने कहा कि तू अभी बहुत छोटा है मेरु पर्वत की सिखाएँ तो देव लोक का स्पर्श करती हैं। इस पर विन्ध्य को बहुत दुःख हुआ और वह भगवान शिव की शरण में गया। शिव ने प्रकट होकर विन्ध्याचल को आशीर्वाद दिया। देवताओं और ऋषियों के अनुरोध पर शिव जी वहीं पर, जो एक ओंकारलिंग था, उसके दो स्वरूप हो गये। भगवान शिव ओंकार नाम से विख्यात हुए। पार्थिव शिवलिंग में, जो शिव ज्योति समाविष्ट हुई, उससे परमेश्वर अथवा अमलेश्वर शिव का आविर्भाव हुआ। यह चौथा ज्योतिर्लिंग है। (शिवपुराण/को० रु०सं/अ०18)
माँ नर्मदा रहस्य
_____
माँ नर्मदा जो शिवपुत्री हैं। और माँ नर्मदा किनारे मिलने वाला हर कंकर शंकर होता है।
भारत वर्ष के अधिकतर मंदिरो और घरो में नर्मदेश्वर महादेव कि पुजा होती हैं।
माँ नर्मदा किनारे शिव पुजन कि विशेष महत्व है।
माँ नर्मदा किनारे श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर में ममलेश्वर मंदिर में होने वाले पार्थैश्वर पुजन का भी विशेष महत्व है।
मिट्टी के छोटे छोटे शिवलिंग बनाकर उनकी पुजा कि जाती हैं।
एक पटिये पर १३२५ शिवलिंग होते हैं।
माता अहिल्या बाई होलकर प्रतिदिन पार्थैश्वर का पुजन करती थी। और आज भी ओंकार क्षेत्र में ममलेश्वर ज्योंतिर्लिंग मंदिर में माता अहिल्याबाई होलकर के नाम से प्रतिदिन पार्थिव पुजन होता है।
पार्थैश्वर पुजन और पार्थैश्वर चिंतामणी पुजन पुरे वर्ष होता है।
परंतु श्रावण माह और अधिकमास में इसका विशेष महत्व है।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
ओम्कारेश्वर (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश में पवित्र माँ नर्मदा के पावन तट पर ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहाँ नर्मदा के दो भाग में विभक्त होने से जो टापू बनता है उसे मान्धाता पर्वत या शिवपुरी कहते है। ओंकारेश्वर शिवलिंग मान्धाता पर्वत पर ही नर्मदा किनारे स्थित है जबकि इसके ठीक सामने नर्मदा के दक्षिण तट पर अमलेश्वर या ममलेश्वर स्थित है। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है। पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या के बाद देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर होकर निवास करें। भगवान शिव ने प्रार्थना स्वीकार की ओर वहां स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो शिव विद्यमान हुए उन्हें ओंकार नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार से पार्थिव रूप में प्रतिष्ठित शिवरूप को ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
नर्मदा नदी पर बने बांध भूखे प्यासे बाढ़ से त्रस्त लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्यसे बनाए गए हैं।
इसलिए ही कहा गया है _
त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे...!
सौंदर्य की नदी नर्मदा
अमृतस्य नर्मदा
पुराणों व धर्मग्रंथों में नर्मदा अवतरण उल्लेखित जानकारी निम्नलिखित है:=
माघ शुक्ल सप्तमी/अष्टमी तिथि
नर्मदा अवतरण दिवस होती हैं
जिसे रथ-सप्तमी भी कहते हैl
नर्मदा नदी का प्रत्येक तट शिव क्षेत्र कहलाता है।
नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्नान, दान, पूजन करना अधिक पुण्यदायी माना गया है।
नर्मदा नदी के तीर्थ वर्जित स्थान में भी स्नान करने पर अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।
नर्मदा नदी के दोनों तटों पर एक कोस के भीतर जितने भी स्वयंभू देवता हैं, उन सब को सिद्धि दायक जानना चाहिए। (स्कन्द पुराण)
नर्मदा जी के चरण अमरकंटक पर्वत पर।
गुल्फ अर्थात पाद संधि मंडला में।
घुटने भेड़ाघाट में, जहां त्रिपुरासुर ने भी घुटने टेके थे।
कटि ( कमर) नेमावर - (सिद्धनाथ) में।
नाभि ॐकारेश्वर में।
उदर महेश्वर में। ह्रदय शूलपाणेश्वर में।
मस्तक भृगु क्षेत्र ( भड़ौच) है।
मां नर्मदा की परिक्रमा ॐकारेश्वर के समीप 24 अवतार तीर्थ से प्रारम्भ की जाती है और यहीं परिक्रमा क्रम पूर्ण किया जाता है। इस कल्प के आरम्भ में आज के दिन भगवान सूर्य रथ पर सवार हुए थे। इसलिए आज सूर्य पूजन का अत्यधिक महत्त्व है।
शुंग वंश –
“दिव्यावदान” व तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र का राज्य नर्मदा तक फैला हुआ था. पाटलिपुत्र. अयोध्या और विदिशा उसके राज्य के मुख्य नगर थे. विदिशा में पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र को अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया. अयोध्या के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये. वहाँ उसने धनदेव नामक व्यक्ति को शासक नियुक्त किया. नर्मदा नदी के तट पर अग्निमित्र की महादेवी धारिणी का भाई वीरसेन सीमा के दुर्ग का रक्षक नियुक्त किया गया था.
विदर्भ से युद्ध
विदर्भ में यज्ञसेन ने एक नए राज्य की नींव डाली थी. वह मौर्य राजा वृहद्रथ के सचित का साला था. इससे प्रकट होता है कि वह पुष्यमित्र के विरुद्ध था. पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने यज्ञसेन के चचेरे भाई माधवसेन से मिलकर एक षड्यंत्र रचा. इसलिए यज्ञसेन के अन्तपाल ने माधाव्सें को पकड़ लिया. इस पर अग्निमित्र ने वीरसेन को यज्ञसेन के विरुद्ध भेजा. वीरसेन ने यज्ञसेन को हरा दिया. इस पर यज्ञसेन को अपने राज्य का कुछ भाग माधवसेन को देना पड़ा. इस प्रकार विदर्भ राज्य को पुष्यमित्र का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा.
यूनानियों का आक्रमण
पतंजली के महाभाष्य से दो बातों का हमें पता चलता है –
पतंजलि ने स्वयं पुष्यमित्र के लिए अश्वमेध यज्ञ कराये
उस समय एक आक्रमण में यूनानियों ने चित्तौड़ के निकट मध्यमिका नगरी और अवध में साकेत का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया.
दुष्य, पराक्रमी यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया. संभवतः यह आक्रमण उस समय हुआ जब पुष्यमित्र मौर्य राजा का सेनापति था. संभव है कि इस युद्ध में विजयी होकर ही पुष्यमित्र बृहद्रथ को मारकर राजा बना हो. कालिदास ने यूनानियों के एक दूसरे आक्रमण का वर्णन अपने नाटक “मालविकाग्निमित्र” में किया है. यह युद्ध संभवतः पंजाब में सिंध नदी के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इस युद्ध में यूनानियों को हराया. शायद यह युद्ध इस कारण हुआ हुआ हो कि यूनानियों ने अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया हो. सभवतः यह यूनानी आक्रमणकारी, जिसने पुष्यमित्र के समय में आक्रमण किया, डिमेट्रियस था. इस प्रकार हम देखते हैं कि पुष्यमित्र ने यूनानियों से कुछ समय के लिए भारत की रक्षा की. यूनानियों को पराजित करके ही संभवतः पुष्यमित्र ने वे अश्वमेध यज्ञ किये जिनका उल्लेख घनदेव के अयोध्या अभिलेख में है.
पुष्यमित्र की धार्मिक नीति
बौद्ध धर्म-ग्रन्थों में लिखा है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का कट्टर समर्थक था. उसने बौद्धों के साथ अत्याचार किया. कहते हैं कि उसने पाटलिपुत्र के प्रसिद्ध मठ कुक्कुटाराम को, जिसे अशोक ने बनवाया था, नष्ट करने की योजना बनाई. उसने पूर्वी पंजाब में शाकल के बौद्ध केंद्र को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया. “दिव्यावदान” में लिखा है कि उसने प्रत्येक बौद्ध भिक्षु के सिर के लिए 100 दीनार देने की घोषणा की. परन्तु यह वृत्तान्त ठीक नहीं प्रतीत होता. भारहुत के अभिलेख से ज्ञात होता है कि इस समय बहुत-से दानियों ने तोरण आदि के लिए स्वेच्छा से दान दिया. यदि पुष्यमित्र की नीति बौद्धों पर सख्ती करने की होती तो वह अवश्य विदिशा के राज्यपाल को आज्ञा देता कि वह बौद्धों को इमारतें बनाने की आज्ञा न दे. संभव है कि कुछ बौद्धों ने पुष्यमित्र का विरोध किया हो और राजनीतिक कारणों से पुष्यमित्र उनके साथ सख्ती का बर्ताव किया है.
पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी
पुराणों में पुष्यमित्र के बाद नौ अन्य शुंग राजाओं के नाम लिखे हैं. अग्निमित्र का नाम कुछ सिक्कों पर खुदा है जो रूहेलखंड में मिले हैं. वसुमित्र का भी नाम आता है. संभवतः हेलियोडोरस के बेस-नगर के गरुड़ध्वज अभिलेख में भागवत नाम के राजा उल्लेख है. संभव है वह भी शुंग वंश का रहा हो. इस वंश का अंतिम राजा देवभूति था जिसे उसके अमात्य वसुदेव ने मारकर 75 ई.पू. के लगभग काण्व वंश की नींव डाली.
काण्व वंश में चार राजा हुए – वसुदेव, भूमिमित्र, नारायण और सुशर्मा जिन्होंने लगभग 45 वर्ष राज्य किया. काण्व वंश उपरान्त मगध में कौन राजा हुए, यह कहना कठिन है. पाटलिपुत्र न कुछ काल के लिए मित्र वंश के राजाओं ने राज्य किया. उनके बाद शक-मुरुंडो का इस प्रदेश पर अधिकार हो . अंत में नाग वंश और गुप्त वंश के राजाओं ने शक-मुरुंडों का नाश किया.
“नर्मदा नदी के हर पत्थर में है शिव, आखिर क्यों ?”
नर्मदेश्वर शिवलिंग के सम्बन्ध में एक धार्मिक कथा है –भारतवर्ष में गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती ये चार नदियां सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें भी इस भूमण्डल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है। प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब नर्मदाजी ने कहा–’ब्रह्मन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।’ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा–’यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है। ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। भगवान शंकर उन पर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब नर्मदा ने कहा–’भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे। नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले–’नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं, परन्तु तुम दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली होगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा।’ भगवान शंकर उसी लिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गयीं। इसलिए कहा जाता है–‘नर्मदा का हर कंकर शंकर है।
माँ नर्मदा रहस्य
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माँ नर्मदा जो शिवपुत्री हैं। और माँ नर्मदा किनारे मिलने वाला हर कंकर शंकर होता है।
भारत वर्ष के अधिकतर मंदिरो और घरो में नर्मदेश्वर महादेव कि पुजा होती हैं।
माँ नर्मदा किनारे शिव पुजन कि विशेष महत्व है।
माँ नर्मदा किनारे श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर में ममलेश्वर मंदिर में होने वाले पार्थैश्वर पुजन का भी विशेष महत्व है।
मिट्टी के छोटे छोटे शिवलिंग बनाकर उनकी पुजा कि जाती हैं।
एक पटिये पर १३२५ शिवलिंग होते हैं।
माता अहिल्या बाई होलकर प्रतिदिन पार्थैश्वर का पुजन करती थी। और आज भी ओंकार क्षेत्र में ममलेश्वर ज्योंतिर्लिंग मंदिर में माता अहिल्याबाई होलकर के नाम से प्रतिदिन पार्थिव पुजन होता है।
पार्थैश्वर पुजन और पार्थैश्वर चिंतामणी पुजन पुरे वर्ष होता है।
परंतु श्रावण माह और अधिकमास में इसका विशेष महत्व है।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
ओम्कारेश्वर (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश में पवित्र माँ नर्मदा के पावन तट पर ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहाँ नर्मदा के दो भाग में विभक्त होने से जो टापू बनता है उसे मान्धाता पर्वत या शिवपुरी कहते है। ओंकारेश्वर शिवलिंग मान्धाता पर्वत पर ही नर्मदा किनारे स्थित है जबकि इसके ठीक सामने नर्मदा के दक्षिण तट पर अमलेश्वर या ममलेश्वर स्थित है। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग मातपस्या के बाद देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर होकर निवास करें। भगवान शिव ने प्रार्थना स्वीकार की ओर वहां स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो शिव विद्यमान हुए उन्हें ओंकार नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार से पार्थिव रूप में प्रतिष्ठित शिवरूप को ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
नर्मदा
प्रपात बाहुल्या नदी है। कपिलधारा, दूधधारा, धावड़ीकुंड, सहस्त्रधारा इसके मुख्य प्रपात हैं।
ओंकारेश्वर नर्मदा नदी तट का प्रमुख तीर्थ है। महेश्वर ही प्राचीन माहिष्मती है। वहाँ के घाट देश के सर्वोत्तम घाटों में से है।
नर्मदा नदी का उद्गगम अमरकंटक से शुरू हुआ था, यहां इसका पाट 20 किलोमीटर चौड़ा है। यह तय करना कठिन है कि कहां अंत है और कहां समुद्र का आरंभ? पर आज स्वरुप बदल रहा है। नर्मदा नदी के तटवर्ती प्रदेश बदल गए हैं कई बांध बांधे जा रहे हैंl
बने बांध भूखे प्यासे बाढ़ से त्रस्त लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्यसे बनाए गए हैं।
त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे...!
सौंदर्य की नदी नर्मदा
अमृतस्य नर्मदा
पुराणों व धर्मग्रंथों में नर्मदा अवतरण उल्लेखित जानकारी निम्नलिखित है:=
माघ शुक्ल सप्तमी/अष्टमी तिथि ह
आज नर्मदा अवतरण दिवस होती हैं
जिसे रथ-सप्तमी भी कहते हैl
नर्मदा नदी का प्रत्येक तट शिव क्षेत्र कहलाता है।
नर्मदा नदी के उत्तर तट पर स्नान, दान, पूजन करना अधिक पुण्यदायी माना गया है।
नर्मदा नदी के तीर्थ वर्जित स्थान में भी स्नान करने पर अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।
नर्मदा नदी के दोनों तटों पर एक कोस के भीतर जितने भी स्वयंभू देवता हैं, उन सब को सिद्धि दायक जानना चाहिए। (स्कन्द पुराण)
नर्मदा जी के चरण अमरकंटक पर्वत पर।
गुल्फ अर्थात पाद संधि मंडला में।
घुटने भेड़ाघाट में, जहां त्रिपुरासुर ने भी घुटने टेके थे।
कटि ( कमर) नेमावर - (सिद्धनाथ) में।
नाभि ॐकारेश्वर में।
उदर महेश्वर में। ह्रदय शूलपाणेश्वर में।
मस्तक भृगु क्षेत्र ( भड़ौच) है।
मां नर्मदा की परिक्रमा ॐकारेश्वर के समीप 24 अवतार तीर्थ से प्रारम्भ की जाती है और यहीं परिक्रमा क्रम पूर्ण किया जाता है। इस कल्प के आरम्भ में आज के दिन भगवान सूर्य रथ पर सवार हुए थे। इसलिए आज सूर्य पूजन का अत्यधिक महत्त्व है।
“नर्मदा नदी के हर पत्थर में है शिव, आखिर क्यों ?”
नर्मदेश्वर शिवलिंग के सम्बन्ध में एक धार्मिक कथा है –भारतवर्ष में गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती ये चार नदियां सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें भी इस भूमण्डल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है। प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब नर्मदाजी ने कहा–’ब्रह्मन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।’ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा–’यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है। ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। भगवान शंकर उन पर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब नर्मदा ने कहा–’भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे। नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले–’नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं।
