आख़िरी मुलाक़ात
आख़िरी मुलाक़ात
19Sep2012 सुहासी :
विराज अब हम नहीं मिलेंगे दिन ब दिन हालात बदतर हो रहें हैं समझ रहे हो ना ये हम आखिरी बार मिल रहें हैं। बस गले लगा लो एक बार, नहीं लगाओगे? "दोनों एक दूसरे को गले लगाते हैं और उस कसी बाँहों में उस कसक में उस आख़िरी मुलाक़ात के उस दर्द के उस ज़ख्म के निशान सुहासी के कंधे पर और विराज के सीने पर साफ़ नजर आ रहे थे।" विराज : तुम तो कहा करती थी भरोसा होने लगा है तुम्हारे प्यार पर फिर क्या हुआ एक ही पल में की भरोसा ना रहा। मैं तो वही हूँ हाँ शक़्ल बदल गयी है अक़्ल तो पहले भी नहीं थी, ये तो तुम भी जानती थी मुझे पता है तुम ही कहा करतीं थी मुझे याद है। फिर क्या हुआ आज सब बदला बदला सा क्यों है कुछ तुम, कुछ हम, कुछ कुछ ये मौसम भी बदल सा रहा है। हाँ, जानता हूँ मोड़ सबकी जिंदगी में आते हैं, ये नहीं पता था की इस तरह एक साथ हम दोनों को मोड़ मिलेगा और वो भी अलग अलग, कैसे रह
पाउँगा क्या सोचूँगा क्या करूँगा ये तो बताना क्या सच मैं कुछ कर भी पाउँगा या नहीं। मैं जानता था इस कहानी को कभी ना कभी तो ख़तम होना ही था, लेकिन ऐसे कैसे ख़तम होगी क्या अलग जाने के बाद मंजिल बदल जाती है सच कहो एक बार क्या बदल जायेगी क्या सच हम कभी नहीं मिलेंगे। पूछ तो नहीं पाउँगा हाल पर क्या सच में कुछ दिनों के बाद हम भूल जायेंगे एक दूसरे को। क्या तुम रह पाओगे मेरे बिना "हाँ" शायद रह भी लोगे या शायद नहीं मुझे नहीं समझ आ रहा कुछ, शायद यही नीयती है। पर क्या तुम रुक नहीं सकते शायद मैं कुछ बन जाऊँ जैसे तुम चाहती थी, जैसी हम बातें किया करते थे तब तो लौट आओगे ना कहो न लौट आओगे ना, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं। सुहासी अपनी पूरी ताक़त से बाँहों का घेरा तोड़ते हुए, विराज..विराज..कहाँ खो गए सुन रहे हो या नहीं कुछ कहो। विराज आँखों में आँसू समेटे पलकें नीची करते हुए, हाँ अब हमें अलग हो जाना चाहिए शायद यही इस रिश्ते को बचा ले। ©®विन...12FEB2016