Manish Mehta

Tragedy Inspirational

4.9  

Manish Mehta

Tragedy Inspirational

आकाश के आँसू

आकाश के आँसू

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आकाश आज बहुत दुखी है। जिस कंपनी में वह पिछले पाँच वर्ष से कार्यरत था, आज ही मैनेजर ने उसे अपने कक्ष में बुलाया और कहा कि घाटे की वजह से कंपनी अपना दिल्ली का दफ़्तर बंद कर रही है इसलिए तुम अपने लिए कोई और नौकरी ढूँढना शुरू कर दो। बस यही बात सोचकर आकाश परेशान हो उठा। घर जाते हुए भी यही बात उसके ज़हन में घूम रही थी। अब नौकरी कहाँ मिलेगी, जिस कंपनी को उसने पाँच साल दिये वह इस मुश्किल के समय उसके साथ ऐसा कैसे कर सकती है। आकाश को दफ़्तर के कुछ साथियों का साथ निभाते-निभाते सिगरेट पीने की आदत, जिसे वह बचपन से नापसंद करता था, पड़ गयी थी। उसने तुरन्त गाड़ी रोकी और बग़ल की दुकान से एक पैकेट सिगरेट ले आया। आकाश जब भी परेशान होता या किसी प्रकार के तनाव में होता तब सिगरेट का सेवन ज़्यादा करता था। वह तीस साल का हो चला है और जानता है कि यह आदत अच्छी नहीं परन्तु न चाहते हुए भी वह न छोड़ पा रहा है और न कोई प्रयास ही कर पा रहा है। अपनी इसी उधेड़बुन में वह मुँह में सिगरेट दबाये गाड़ी की ओर चल पड़ा।

गाड़ी चलाते-चलाते आकाश की यह तीसरी सिगरेट है। आज घर बहुत दूर प्रतीत हो रहा है और रास्ता लम्बा। तभी एक लाल बत्ती पर आकाश गाड़ी रोकता है, सिगरेट का कश लगाते हुए फिर से बॉस की बात सोचने लगता है तभी अचानक एक सात आठ साल का बच्चा जिसके हाथ में कुछ छोटे बड़े झंडे हैं, खिड़की के पास आकर कुछ कहता है “भैया झंडा लेलो गाड़ी में सामने लगा लेना” आकाश अपने ही ख़्याल में डूबा उस बच्चे की बात को अनसुना करते हुए फिर से सिगरेट का कश लगाता है। वह बच्चा फिर से बोला “लेलो ना भैया, एक तो लेलो” और आकाश के हाथ पर हाथ रखता है। आकाश सिगरेट फेंकते हुए झुँझलाकर बच्चे की ओर देखता है और ग़ुस्से से कहता है “जा यहाँ से नहीं चाहिए मुझे कुछ, चल भाग जा” वह छोटा सा बच्चा एक क़दम पीछे हटकर निराशा से पलटा लेकिन अगले ही पल पास के स्कूटर वाले की ओर तेज़ी से आगे बढ़ा। उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान और दृढ़ता थी मानो अब वह सफल ज़रूर होगा। अचानक आकाश की नज़र सड़क पर गिरी सिगरेट पर पड़ी जो उसी ने कुछ सेकेंड पहले फेंकी थी। वह अब भी जल रही थी और बच्चा जिसने पाँव में कुछ नहीं पहना था उसी ओर बढ़ रहा था। इससे पहले आकाश कुछ कह पाता बच्चा सिगरेट पर पाँव रख चुका था। उसके मुँह से हल्की आह की आवाज़ निकली परन्तु वह रूका नहीं। बिना रुके पाँव को आधा सड़क पर टिकाए स्कूटर वाले की ओर बढ़ता रहा। उसकी आतुर्ता देख लगता था मानो बत्ती हरी होने से पहले कम से कम एक झंडा तो वह बेच ही लेगा। पाँव को हवा में उठाए वह स्कूटर वाले से बात करता रहा। आकाश का सारा ध्यान अब उस छोटे से पाँव पर था तभी बत्ती हरी हो गयी और पीछे गाड़ी वाले हॉर्न बजाने लगे। आकाश गाड़ी आगे बढ़ाकर फिर से सोच में डूब गया पर अब उसके दिमाग में नौकरी की जगह उस बच्चे ने ले ली थी। परेशानी में भी उसका मुस्कुराता चेहरा आकाश के ज़हन में मानो छप सा गया था।

उस रात आकाश को नींद नहीं आयी। वह उठकर छत पर चला गया और जैसे ही उसका हाथ जेब में रखे सिगरेट के पैकेट की तरफ़ गया, वह निराश हो सोचने लगा, क्या ग़लती थी उस बच्चे की जो मेरी वजह से उसका पाँव जल गया? मैं जहाँ एक काम छूट जाने पर इतना दुखी हो रहा हूँ वह रोज़ न जाने कितने प्रयास कर हारता होगा लेकिन हार नहीं मानता। इस उधेड़बुन में खड़ा आकाश ख़ुद से एक वादा करता है कि वह अब कभी सिगरेट नहीं पिएगा और नई सोच, नई उम्मीद के साथ जीवन की नई शुरुआत करेगा। घड़ी की ओर देखकर सोचता है आज दिन भी 15 अगस्त हो चला यानी स्वतंत्रता दिवस! स्वतंत्रता छोटी सोच से, स्वतंत्रता निराशा से और स्वतंत्रता बुरी आदत से भी।

अगले दिन आकाश नए जूते लेकर उसी सिग्नल पर पहुँचता है। हाँ! वह उस छोटे से पाँव का माप कैसे भूल सकता है जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी। गाड़ी किनारे पर लगाकर आकाश की नज़रें उस बच्चे को इधर-उधर तलाश करने लगी, तभी दूर उसे वही बच्चा नज़र आया। उसके हाथ में कुछ झंडे और दूसरे कंधे पर लटका एक पुराना मैला सा थैला, जिसमें शायद वह पैसे रखता होगा। आकाश ने उसे पुकारा “बेटा सुनो! हाँ तुम! इधर आओ” बच्चा दौड़ता हुआ आकाश के सामने आ खड़ा हुआ और बोला “आपको झंडा चाहिए भैया?” आकाश ने मुस्कुराकर कहा “हाँ दे दो, कितने का है” “जी दस रुपए” बच्चा बोला। आकाश ने जेब से दस का नोट निकाला और बच्चे की तरफ़ बढ़ाकर बोला “नाम क्या है बेटा तुम्हारा?” “जी मेरा नाम दीपक है” बच्चे ने नोट को थैले में डालते हुए कहा। आकाश गाड़ी में से जूते निकालते हुए बोला “दीपक ही होना चाहिये दूसरों को प्रकाश देकर ख़ुद अंधेरे में रहने वाला, बहुत प्यारा नाम है और ये जूते तुम्हारे लिए हैं लो पहन लो बेटा” आकाश झुककर अब दीपक के चेहरे के बराबर आ चुका था। बच्चे ने एक पल रुककर जूतों को हाथ में लिया और बग़ल के थैले में डालने लगा, तुरन्त आकाश बोल उठा “अरे पहन लो बेटा पहनने के लिए ही हैं” दीपक ने हल्के स्वर में कहा “पाँव गंदे हैं भैया, जूते नये हैं, वो सामने नल है ना पाँच बजे उसने पानी आता है, पाँव धोकर फिर पहन लूँगा”

इतना सुनते ही आकाश की आँखें भर आईं और एक आँसू दीपक के पाँव पर जा गिरा।


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