आज का सफ़र
आज का सफ़र
सुबह 11बजे आज मैं गांधी नगर रेलवे स्टेशन जयपुर से जम्मू तवी एक्सप्रेस से दीवाली मनाने अपने घर आ रही थी मेरे पास सामान्य श्रेणी का टिकट था भीड़ अधिक होने के कारण में स्लीपर में चढ़ गई जैसे ही ट्रेन के गेट में मैंने प्रवेश किया का एक आंटी गेट पर खड़ी बड़ी मुश्किल से में ट्रेन के अंदर चढ़ पाई अंदर जाकर देखा ट्रेन खचाखच भरी थी जो आंटी गेट रोकर इस खड़ी थी उसी के पास थोड़ी बैठने की जगह थी मैंने कहा आंटी थोड़ा आगे खिसक जाइए मुझे भी बैठना है..... आंटी ने मेरी तरफ और मेरी दोस्त की तरफ देखा साथ में एक लड़का भी हमारे पास खड़ा था हम तीनों उम्मीद में थे शायद हमें बैठने की जगह मिल जायेगी परन्तु कुछ ही देर हम तीनों की उम्मीद नाउम्मीद में बदल आंटी तो पैर और फैलाकर देश महारानी की तरह बैठ गई मेरी दोस्त को सामने वाली शीट पर थोड़ी बैठने की जगह मिल गई मैं और मेरे पास खड़ा लड़का ये सोच कर खड़े रहे शायद कहीं हमें बैठने की जगह मिल जायेगी कुछ देर बाद दौसा के बाद मुझे बैठने की जगह मिल गई मेरे पास खड़ा वो लड़का गेट पर जाकर खड़ा हो शायद वो सफ़र आनंद ले रहा बाहर बहुत ही खूबसूरत नज़ारा था....बांदीकुई आते आते ट्रेन में काफी जगह हो गई थी मैं जाकर खिड़की के पास बैठ गई ...खिड़की से बाहर
सफ़र में नीरस जिंदगी में कुछ ढूंढने की कोशिश कर रही थी बाहर ठंडी हवा चल रही खिड़की से आते जाते पेड़ ऐसे लग रहे थे जैसे वो मुझसे कुछ कह रहें हो मैं खिलखिलाने वाली लड़की आज क्यों इतनी गुमसुम हो गई हूं कभी एक जमाना था मैं हवाओं से बात करती चलती थी खुद को मैं दुनिया की बहुत खुशनसीब लड़की समझती थी सब सोचते सोचते मन में ख्याल आया बहुत दिन हो कुछ तस्वीरें ले लूं मैं खिड़की से खुद की और बाहर के उस खूबसूरत नज़ारे की तस्वीर लेने लगी अचानक से मेरी नजर सामने बैठे उस लड़के पर पड़ी जो शायद बहुत देर से मुझसे बात करने की कोशिश कर रहा था लेकिन मैं हूं कि मुझे सफर में किसी से ज्यादा बात करना अच्छा नहीं लगता और मैं अपनी तस्वीर लेने में व्यस्त हो गई फिर मैंने सामने बैठे लड़के से बहुत हिम्मत करके कहा की भैया जी मेरी क्या आप मेरी कुछ तस्वीर मेरे फोन के कैमरे में कैद कर सकते हो लड़के ने मुस्कुरा कर कहा क्यों नहीं और उसने मेरे फोन से मेरी खिड़की के पास बैठी पांच से सात तस्वीर ले ली और मैंने फिर अपना फोन उससे ले लिया इतने में ट्रेन चलती हुई राजगढ़ तक आ गई थी जहां लगभग पूरा डिब्बा खाली हो गया कुछ ही यात्री शेष थे सामने बैठे लड़के ने कहा मैं अपने फोन से आपकी तस्वीर ले लेता हूं मेरे फोन में अच्छी आती है.... मैंने उसके लाख चाहने पर मना कर दिया... ठीक है बस जैसी भी अच्छी है अब उसे कैसे समझती फोन का कोई दोष नहीं है मुझे ही मुस्कुराए न जाने कितने दिन बीत गए ..... वो लड़का बात करने की बार बार कोशिश कर रहा था और मैं हूं कि उसे नजरंदाज किए जा रही थी इतने में मेरी मंजिल आ गई और और वो लड़का जिसको अभी और आगे जाना ट्रेन रुकते ही उतर गया मैंने देखा वो सामने खड़ा शायद कुछ कहना चाह रहा था मैं उसे नजरंदाज कर निकल गई
ट्रेन चल चुकी थी गेट में खड़ा वि अब भी मेरी और न जाने किस उम्मीद में देखे जा रहा और जाते जाते मेरी नजर उस पर पड़ी उसने अपना फोन मेरी तरफ घुमाया जिसमें मेरी कुछ तस्वीर उसने कैद कर ली थी... मैं कुछ कह पाती इतने में ट्रेन ने अपनी गति बढ़ा ली......! शायद ये ऐसा मेरा पहला सफ़र था....!
एक अनजान सफ़र