आईसोलेट
आईसोलेट


डॉ. - क्या तुम पागल हो गई हो सोफी ? लोग हमें भगवान समझते है और तुम कहती हो कि मैं अवकाश लेकर ...
सोफिया :- दो दिन का आराम ले लो ताकि ठीक से सेवा कर सको।
डॉ. :- सोफी हम डॉ. इस महामारी से लोगों को बचाने की एकमात्र उम्मीद हैं। ये जानते हुए कि हमारी जान को खतरा है। सोफी कभी कभी तो मौका मिलता है सेवा का ....जब देश पर बाहरी संकट होता है, विदेशी आक्रमण होते हैं तो सैनिक अपनी जान की परवाह किये बिना लड़ते हैं और लड़ते - लड़ते श...ही...
सोफिया :- क्या ? तो तुम भी संक्रमित...
डॉ. :- नहीं सोफी ....ऐसा नहीं है। परन्तु खतरा बराबर बना हुआ है। न तो इस महामारी का कोई वैक्सीन बना पा रहे हैं। और न ही इसके संक्रमण को रोक पा रहे हैं। अब तो कब्रिस्तान ने लाशों को पनाह देने से इनकार कर दिया। ऐसा मैंने सिर्फ़ कहानियों में सुना था या हॉरर फिल्मों में देखा था। परन्तु एक बात तो है ( कहते - कहते उनकी आँखों में चमक आ गई ) जंग क्या होती है और जंगबाज के हौसले कैसे माकूल बने रहते हैं पहली बार जाना। यह पहला साक्षात अनुभव है मौत के साथ दो दो हाथ करने का, सचमुच नया और अनूठा...
सोफिया :-( बात काटते हुए ) बस - बस अल्लाह के वास्ते चुप हो जाओ, ख़ुदा खैर रखे अपने बन्दों पर। कब यह महा संकट टलेगा ? मेरा तो दिल बैठा जा रहा है दिन भर टीवी पर तरह -तरह की खबरें देख-सुनकर। क्या सचमुच चीन इस पर काबू नहीं पा सका ? क्या अमेरिका भी हार गया, इटली के हालात तो बिल्कुल बेकाबू हो गए ....फिर अपना क्या होगा ....
डॉ. :- जो भी होगा अच्छा ही होगा परवरदिगार पर यकीन रखो चलो आराम करो। तुम बच्चों का ख्याल रखना, मैं कल मिलूंगा जल्दी वापस जाना होगा अस्पताल में डॉक्टरों की बहुत कमी है।
सोफिया :- ( रुआँसी होकर ) अपना ख्याल रखना, ख़ुदा हाफिज ।
फिर वही जंग ....डॉ. साहब का मस्तिष्क तेजी से चलने लगा। एक दो दिन में पूरी मेडिकल टीम की भी जाँच करनी है। उन्होंने एक लम्बी सांस ली और गाड़ी को अस्पताल पार्किंग में लगाकर मास्क पहना और मोर्चे पर चल पड़े।
लगातार अस्पताल में कोरोना संक्रमित रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी, बेड कम पड़ने की नौबत आ गई थी रोगियों को आस पास के फ्लेटों में शिफ्ट कर आईसोलेट करना पड़ रहा है। वो यकायक झुँझला उठे और कुर्सी पर सर टेक कर बीते दिन याद करने लगे।
आज पूरी मेडिकल टीम का चेक अप हुआ चार डॉक्टर पॉजिटिव पाए गए। उनमें से एक वह स्वयं भी है यह सोचकर सिहरन सी दौड़ गई। यह बात उनके स्टाफ के चंद लोगों को पता है। क्या उन्हें स्वयं को आईसोलेट कर लेना चाहिए ? आज इस महामारी से लड़ते लगभग एक माह हो गया। कितने ही लोगों को उन्होंने जिन्दगी दी, लोग कितनी उम्मीद से उनकी तरफ देखते हैं, गिड़गिड़ाते हैं ....संक्रमित पाए जाने पर जो दहशत उनके चेहरे पर होती है उसे महसूस कर डॉ. साहब के चेहरे पर पसीने की बूँदें छलक आई। काम करते - करते कब उन्हें संक्रमण हो गया पता ही नहीं चला ? उनके सामने अपने बच्चों और बीवी सोफिया की तस्वीर घूम गई। सोफिया प्रेंगनेट है सोचकर वह भीतर तक दहल गए।
फोन की घन्टी ने उनका ध्यान भटकाया, घर से फोन ? ओ...हो ...सोफी का फोन ...
(फोन उठाकर ) आई एम रियली सॉरी सोफी ! मैं घर नहीं आ सका ( स्वयं को संयत करते हुए उन्होंने कहा )
सोफिया :- आप ठीक तो हो ? कम से कम एक फोन तो कर दिया करो, मेरा जी घबरा रहा है। ख़ुदा खैर करे ।
डॉ. :- मैं बिल्कुल ठीक हूँ सोफी, बच्चे कैसे हैं ? उनका ख्याल रखना।
सोफिया :- अभी खाना खिलाकर सुलाया है।
डॉ. :- और वो जनाब जो आपके साथ हैं उनका ..
सोफिया :- (हँस कर) आप भी ...वो भी ठीक है। आप बताओ (कुछ देर तक कोई आवाज़ नहीं आती ) हैलो ...हैलो ...
डॉ. :- हाँ सोफी ...
सोफिया :- मुझे डर लग रहा है ? आप कुछ बोले क्यों नहीं ? आप कुछ छिपा रहे हो मुझसे, बोलो ना क्या बात है ?
डॉ. :- कोई बात नहीं सोफी। सब ठीक है ...एक बात बताओ ..
सोफिया :- हाँ पूछो ?
डॉ. :- तुम्हें कैसा लगेगा यदि मैं यह जंग लड़ते - लड़ते शही...
सोफिया :- अल्लाह के लिए ऐसी बातें मत करो ।
डॉ. :- (थोड़े नरम लेकिन सपाट लहजे में ) बताओ ना सोफी ...तुम्हें मुझ पर फक्र होगा ना ...तुम मेरे बच्चों को बताना कि तुम्हारे अब्बू महामारी से बड़ी बहादुरी से लड़े और ..