आधा सपना...!
आधा सपना...!
तुम्हें पता है - बचपन से ही मुझे बहुत पसंद थी - सफेद कोट पहने हुए, गले में स्टेथेस्कोप लटकाए हुए लेडी डाॅक्टर, जो बड़े आत्मविश्वास के साथ चलती, लोगों से बतियाती, मुझे इतना आकर्षित करती कि हर वक्त मेरे जहन पे छाई रहती! जब उससे लोग अपनी तकलीफ बयान करते - डाॅक्टर साहब मुझे ये हुआ, वो हुआ, ऐसे दुखता, वैसे दुखता वगैरह -वगैरह... तब मुझे लगता वाकई क्या व्यक्तित्व है! क्या हस्ती है! बस, मुझे हमेशा ही लगता - डाॅक्टर बनना है लेकिन हालात... न बन सकी...
पांचवीं कक्षा पास लड़की की शादी तेरह साल की उम्र में कर दी गई... तब हमारे यहां ऐसा ही रिवाज था, लड़कियों की शादी छोटी उम्र में ही में ही कर दी जाती थी, लोगों का ऐसा विश्वास था कि छोटी उम्र में लड़कियों का विवाह करना पुण्य का कार्य है! खैर अब तो पिछले पच्चीस-तीस सालों में बहुत बदलाव आया है, सोच बदली है... अब बच्चियों की शादी नहीं होती बल्कि युवतियों की होती है!
डाॅक्टर बनने का मेरा सपना तो सपना ही रह गया! शादी के वक्त ससुराल आठ-दस दिन रही बाद में करीब दो साल अपने घर पर रहने के बाद पति महोदय ले गए... बस जिन्दगी के कार्यों में रम गई! शादी की तरह बच्चे भी जल्दी हो गए फिर भी यह डाॅक्टर मेरे साथ ही रही, अक्सर दिल करता - काश मैं भी डाॅक्टर बन पाती!
मेरे दोनों बच्चे नर्सरी, केजी में जाने लगे, मिस्टर एयरफोर्स में थे वहां लोग पढ़े-लिखे ही होते थे... अंग्रेजी भी बोलते। मुझसे जब अंग्रेजी में बोलते तब मुझे तो बस, यस, नो, थेंक्यू के अलावा कुछ आता नहीं था और यह भी गलत-सलत बोल देती... कहां बोलना, कहां नहीं बोलना पर शेखी में बोल ही देती! मिस्टर को शर्मिंदगी महसूस होती - यार अंग्रेजी नहीं आती तो अंट-संट क्यों बोलती हो, जब मैं पढ़ाता तब तो पढ़ती नहीं थी और अब...?
अब भी पढ़ सकती हो तुम्हारे पास वक्त है... बेचारे कोशिश भी करते अंग्रेजी पढ़ाने की किसी-किसी शब्द की स्पेलिंग याद नहीं होती रटने के बाद भी... तो एक बार परेशान होकर कसके चांटा लगा दिया तो हमने भी पढ़ने को टाटा बोल दिया, लेकिन हमारी फनी अंग्रेजी अक्स हमें भी शर्मिंदा करवाती! आखिर थक हार कर हथियार डाल दिए जब साहब से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो जनाब ने टका - सा जवाब दे दिया - नाउ यू कांट डू ऐनी थिंग!
बस जी रामबाण बन गया वो वाक्य और यह बंदी जुट गई इधर-उधर हाथ-पांव मारने... जनाब को जब पूरी तरह भरोसा हुआ हमारी जिजीविषा और मेहनत देखकर तब जुट गए हमारे साथ! फिर तो यह पांचवीं कक्षा पास बन गई डाॅक्टर! हां मेडिकल डाॅक्टर तो नहीं मगर पीएचडी करके अपने नाम के आगे डाॅक्टर लगाने का अधिकार तो पा लिया! कृष्णा खत्री बन गई डाॅक्टर कृष्णा खत्री और साथ ही काॅलेज लेक्चरर भी! इसका सारा श्रेय जाता है हमारे श्रीमानजी काे, जिनके सहयोग के बिना कुछ भी संभव न होता! आधा सपना ही सही पर सच तो हुआ, डाॅक्टर तो बन गई!