आधा अक्षर
आधा अक्षर
आधा अक्षर (कहानी) हमारे मोहल्ले में आज सुबह से मोहल्ले की एक लड़की का विवाह चर्चा का विषय बना हुआ है। यह विवाह एक प्रेम विवाह था। वैसे इस विवाह का प्रेम विवाह होना चर्चा का विषय नहीं था क्योंकि आजकल प्रेम विवाह एक आम बात हो गई है और लोग इसे आसानी से पचा लेते हैं। इस विवाह का अंतर्जातीय विवाह होना भी चर्चा का विषय नहीं था क्योंकि ज्यादातर प्रेम विवाह इसी तरह के होते हैं। फिर भी इस चर्चा ने ऐसा जोर पकड़ा कि घरों की औरतें किसी-न-किसी बहाने से एक-दूसरे के घर जा रही थीं और पूरे उत्साह के साथ चर्चा में लगी हुई थीं। मोहल्ले में हो रही इस चर्चा का पता मुझे तब चला जब हमारे सामने वाली माथुर आंटी हमारे घर आई। वह कह रही थी, ”सुधीर की मम्मी, आपको कुछ पता है! शर्मा जी की लड़की सुधा शादी के एक हफ्ते बाद पगफेरा (शादी के बाद जब लड़की पहली बार अपने मायके आती है, उसे ‘पगफेरा डालना’ कहते हैं) डालने आई है। उसके आने का मुझे तब पता चला, जब मैं घर के बाहर की सफाई कर रही थी। जब मैंने उसके पति को देखा तो मैं हैरान रह गई। मैंने देखा कि दो आदमी उसके पति को कार से उतारकर व्हीलचेयर में बिठा रहे थे और सुधा उनकी मदद कर रही थी।
पहले तो मैंने सोचा कि वह उसका पति नहीं, कोई और ही होगा क्योंकि सुधा जैसी सुन्दर और इतनी पढ़ी-लिखी लड़की एक अपाहिज आदमी से शादी कैसे कर सकती है? लेकिन जब मैंने पास जाकर उससे पूछा तो पता चला कि वह अपाहिज ही उसका पति है। मैंने तो सुना था कि सुधा ने लव मैरिज की है; मैंने तो यह भी सुना था कि जिस लड़के से उसने शादी की है, वह कोई बहुत बड़ा लेखक है और उसी की कहानियों और कविताओं को पढ़कर सुधा को उससे प्यार हो गया और उसने उससे शादी कर ली। लेकिन सब झूठ ही लगता है।
भला एक भली-चंगी लड़की को एक अपाहिज लड़के से प्यार कैसे हो सकता है? अब शर्मा बहनजी अपनी लड़की की शादी को ‘लव मैरिज’ कहे या कुछ और; सच्चाई तो पूरा मोहल्ला जानता है। कौन नहीं जानता कि सुधा की बढ़ी हुई उम्र के कारण उसकी शादी कहीं भी नहीं हो रही थी। उसके परिवार की गरीबी किसी से छिपी नहीं है। लड़की की शादी के लिए बहुत-सा पैसा चाहिए होता है, जो उनके पास बिल्कुल भी नहीं है। यह हो सकता है कि अपाहिज लड़के से शादी करने में एक भी पैसा खर्च न हुआ हो, लेकिन ऐसी भी क्या मजबूरी कि सुधा ने अपाहिज लड़के से शादी कर ली !
इससे अच्छा तो वह किसी तलाकशुदा लड़के से शादी कर लेती चाहे उसके बच्चे ही क्यों न हो; या फिर अपने से कितनी ही बड़ी उम्र के लड़के से शादी कर लेती, उसमें कोई हर्ज नहीं था और ऐसे लड़कों की कोई कमी भी नहीं है। किसी तलाकशुदा लड़के या अपने से बहुत बड़ी उम्र के लड़के से शादी करके वह राज करती लेकिन एक अपाहिज लड़के से शादी करके राज करने की तो छोड़ो, वह तो शादी का सुख भी नहीं भोग सकेगी। औ़र तो और उससे शादी करके वह सारी उम्र उसी की सेवा में लगी रहेगी। ऐसे लड़के से किसी लड़की को प्यार हो ही नहीं सकता जो इतना अपाहिज हो कि वह शादी का एक भी सुख न दे सके; फिर चाहे वह कितना बड़ा लेखक क्यों न हो। बेचारी सुधा की जरूर कोई न कोई बहुत बड़ी मजबूरी रही होगी जो एक अपाहिज लड़के से शादी कर ली और उसके घरवाले इस शादी को ‘लव मैरिज’ कहकर उसकी मजबूरियों पर पर्दा डाल रहे हैं।“ अब माथुर आंटी अपनी बात कहकर अपने मन की बेचैनी को शांत कर सकी या नहीं, इसका मुझे नहीं पता; लेकिन माथुर आंटी की नान-स्टाप बातों ने मेरे मन की उस जिज्ञासा को जरूर शांत कर दिया जो होश सम्भालने के साथ ही मन में उठने लगी थी।
आज से पहले जब भी मैं ‘प्यार’ ‘प्रेम’ ‘इश्क’ और ‘मुहब्बत’ शब्दों को देखता था तो मन में यह जिज्ञासा उठती थी कि इस सुन्दर और पवित्र भावना को अभिव्यक्त करने वाले इन चारों शब्दों में एक अक्षर आधा क्यों होता है? लेकिन आज माथुर आंटी की बातें सुनकर इस आधे अक्षर का रहस्य मेरी समझ में आ गया।
प्यार क्या होता है, यह आजतक कोई समझ नहीं पाया और अगर समझ भी पाया है तो केवल आधा-अधूरा ही। इसीलिए तो सुधा दीदी की शादी को माथुर आंटी ने उसकी कोई ‘बहुत बड़ी मजबूरी’ करार दिया। यहाँ तक कि मैं भी इस उलझन में पड़ गया कि सुधा दीदी को किस दृष्टि से देखूँ - किसी को जीवन की सारी खुशियाँ देने के लिए अपनी खुशियों को तिलांजलि देने वाली एक महान स्त्री या केवल एक प्रेमिका। सब कुछ आधा-अधूरा ही दिख रहा था, बिल्कुल आधे अक्षर की तरह।