anuradha saxena

Romance

4  

anuradha saxena

Romance

आधा अधूरा

आधा अधूरा

2 mins
120



मैं:  “कैसे हो?”

वो:  “जिंदगी में गम है, गम में दर्द है, दर्द में मजा है और मजे में हम हैं।”

मैं:  “कैसा ग़म”

वो:  “ऐसे ही... तुम कैसी हो?”

मैं:  “ज़िंदा हूँ.....इससे बड़ी बात भी कुछ हो सकती है क्या?”

वो:  “ज़िंदा तो हम सभी है...बस ज़िंदगी नहीं है”

मैं:  “ज़िंदगी कहीं खो गई है”

वो:  “हाँ...मेरे पास तुम नहीं हो... तुम्हारे पास कोई और नहीं है”

मैं:  “पर जो मेरे पास नहीं है वो मेरी है.... और जो तुम्हारे पास नहीं है वो किसी और की है...बस इतना ही हमदोनो में फ़र्क़ है”

वो: “सोच है अपना अपना...मेरे नज़र में तुम मेरी हो....तुम्हारे नज़र में तुम किसी और की हो.....बस नज़रिया का फ़र्क़ है।”

मैं:  “वो कैसे”

वो:  “जैसे तुम देखना चाहो वैसे...ख़ैर जो भी, प्यार तो मैं हमेशा तुमसे करता रहूँगा।”

मैं:  “एक वक़्त आएगा जब ये सब भूल जाओगे”

वो:  “फिर तो मैं उम्मीद करूँगा, वो आख़री दिन हो मेरा”

मैं:  “तब तो तुम पागल हो”

वो:  “फिर भी तुमसे प्यार करता हूँ”

मैं:  “ये जानते हुए भी की मैं किसी और की हूँ...”

वो:  “जवाब तुम्हें मालूम है”

मैं: (कुछ देर सोचने के बाद जब कुछ बोलते ना बना तो) “ख़ैर ख़्याल रखो अपना”

•••••••••कई बार ऐसे शख्स से हम संवाद कर रहे होते हैं, जिससे बातों ही बातों में ऐसी बात हो जाती है कि उस संवाद को कभी पूर्ण नहीं किया जा सकता है, और आधे अधूरे संवाद में ही हम ख़ामोश हो जाते हैं।

सोचती हूँ कभी कभी क्या ऐसा संवाद कभी पूर्ण हो भी सकता है? सोचती हूँ क्या उस शक्स के गहराइयों को कभी माप सकते है!!

कितनी अजीब बात है ना हर शक्स किसी ना किसी का है, पर जो जिसका है वो उसी का नहीं है, और जो एकदूसरे का है वो भी एकदूसरे से दूर है, चाहे उस दूरी की वजह कुछ भी हो!!••••••••••


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