आधा -अधूरा सपना, भाग १
आधा -अधूरा सपना, भाग १
खेत की पगडंडी पर गाना गाते हुए अपनी मस्ती में एक लड़का जा रहा है। बीच बीच में वो ढेला उठाता है और चिडिओं को खेत में से उडा देता है। अचानक एक गोली चलने की आवाज आती है। वो बहुत डर जाता है। जल्दी से नजदीक के एक पेड़ पर चढ़ जाता है। वहां से उसे नजदीक ही दो लोग दिखते हैं जो कि एक घायल व्यक्ति के पास खड़े हैं। घायल व्यक्ति उनसे गिड़गिड़ा रहा है पर उन दोनों में से एक व्यक्ति उसके सिर में गोली मार देता है और वो तुरंत ही मर जाता है।
विपिन चीखने ही वाला था पर जैसे तैसे उस ने अपनी चीख रोक ली। उसने देखा उन दोनों ने लाश को अपनी गाडी में डाला जो कि कुछ दूरी पर खड़ी थी और पानी की एक बोलत निकाल कर उसी पेड़ के नीचे खड़े होकर पीने लगे। विपिन के दिल की धड़कनें बहुत तेज चल रहीं थीं जैसे कि उसका दिल बस अभी फट जायेगा। वो पसीने पसीने हो रहा था और बुरी तरह कांप रहा था। इतने में उसका पैर थोड़ा फिसला और वृक्ष की एक टहनी टूट कर उनमें से एक आदमी के सिर के ऊपर गिरी। उसने झट से ऊपर की तरफ देखा।
तभी विपिन एक दम से हड़बड़ा कर उठा। वो पसीने से तरबतर था। लेकिन तभी वो सम्भला और ये देख कर उसकी जान में जान आयी के ये सब एक सपना था। उस ने सुबह का नाश्ता किया और एक गिलास लस्सी पी कर माँ से कहने लगा कि मैं अनिल के घर जा रहा हूँ। आज इतवार था तो स्कूल की छुट्टी थी। दोनों दसवीं क्लास में पढ़ते थे और इतवार को दोनों खेतों में जाया करते थे। अनिल के घर से उसे लेकर दोनों खेतों की तरफ निकल लिए।
रास्ते में अनिल को याद आया कि वो अपना मोबाइल घर पर ही भूल गया है। उसने विपिन को कहा की मैं मोबाइल लेकर आता हूँ ,तुम खेतों में पहुंचो। ये कहकर वो घर की तरफ निकल लिया। अनिल चिडिओं को ढेलों से उडाता खेतों की तरफ चला जा रहा थी कि अचानक गोली चलने की आवाज आई। वो झट से पेड़ के ऊपर चढ़ गया। अब उसे रात वाला सपना याद आ रहा था। सारे घटनाक्रम वैसे ही हो रहे थे जैसे सपने में थे। ये सोच कर वो और भी डर गया। जब वृक्ष की टहनी उस आदमी पर गिरी तो उसने ऊपर की तरफ देखा पर उसे विपिन नजर नहीं आया। इतने में एक बन्दर एक टहनी से दूसरी टहनी पर उछलता हुआ दिखाई दिया। उन दोनों को कोई शक न हुआ और वो दोनों वहां से चले गए। जब गाडी चली तो विपिन ने उस गाडी का नंबर याद कर लिया पर वो पेड़ से तब ही उतरा जब गाडी काफी दूर जा चुकी थी।
उसकी सांसें अभी भी अटकी हुईं थीं। वो वहीँ बेठ गया। इतने में अनिल भी आ गया। उसने जब विपिन को घबराये हुए पेड़ के नीचे बैठे देखा तो उसका कारण पूछा। विपिन ने हाँफते हुए उसे सारा किस्सा सुनाया। अनिल को भी थोड़ी घबराहट हुई। फिर संभलकर दोनों अनिल के घर चले गए। वहां दोनों एक कमरे मैं बेठ कर सोचने लगे कि क्या किया जाये। अनिल ने विपिन से पूछा क्या उन तीनों में से किसी को पहचानते हो तो विपिन ने ना में सिर हिलाया। पर उसे उस गाडी का नंबर याद था जिससे वो लाश लेकर गए थे। उसने झट से वो नंबर एक कागज पर लिख लिया।
दोनों सोच रहे थे की ये बात हमें किसी को बतानी चाहिए कि नहीं। दोनों को डर था कि अगर ये बात हम पुलिस को बताते हैं तो वो कातिल हमें भी मार सकते हैं और अगर नहीं बताते तो पुलिस को बाद में पता लगने पर वो हमें परेशान कर सकती है। वो अभी इस कश्मकश में ही थे कि अनिल की माँ उनके लिए शरबत ले आई। वो दोनों एक दम से चुप हो गए। उन दोनों के चेहरों से घबराहट साफ़ झलक रही थी। जब माँ ने उनसे पूछा की क्या बात है तो दोनों बोले कोई बात नहीं, बस थोड़ा थक गए हैं। पर माँ तो माँ ही होती है, वो अपने बच्चों की परेशानी समझ ही जाती है। जब माँ ने बार बार पूछा तो दोनों ने सारा सच बता दिया। माँ ने अनिल के पिता को सब बताया और उन्होंने पुलिस को फ़ोन कर दिया। इंस्पेक्टर के आने पर दोनों ने उन्हें सारी बात बताई और गाडी का नंबर भी दे दिया।
अगले दिन इंस्पेक्टर दोबारा गांव में आये और उन्होंने सब को बताया कि गाडी नंबर से उन्होंने लाश को भी ढून्ढ लिया और कातिलों को भी पकड़ लिया। विपिन और अनिल को भी उनकी बहादुरी के लिए सभी गांव वालों के सामने सम्मानित किया। उस रात विपिन ये सोच रहा था की सपने वाली बात अनिल को या किसी और को बताऊँ या नहीं। फिर वो सोचने लगा शायद ये सब एक इत्तेफाक था। ऐसा सोचते सोचते वो सो गया।