25 दिसंबर से 25 जनवरी का फासला
25 दिसंबर से 25 जनवरी का फासला
25 जनवरी की शाम 26 जनवरी का इंतजार करते बीतती है, कुछ लोग परेड का इंतजार करते हैं और कुछ केवल छुट्टी के एक दिन का। पूरा साल आगे खड़ा है और एक महीना अब लगभग जाने को है। अभी-अभी तो नया साल था और अभी ही था क्रिसमस, पर अब 25 दिसंबर के बारे में सोचते हैं तो एक लंबा अरसा लगता है, लगता है जैसे समय के किसी दूसरे छोर पर था पिछले साल का 25 दिसम्बर, तीस ही दिन तो बीते हैं, और लगता है जैसे साल निकलें हों।
समय को अनुभव करने का सबका अपना अनुभव है। वही कुछ दिन जो मुझे बरसों लगे, शायद आपको कुछ क्षण जान पड़े हों, और यह एक अनुभूति किसी के साथ बांटी नहीं जा सकती, सब केवल एक बात पर सहमत होते हैं कि समय कैसे बीता, पता नहीं चला। कल ही तो हम अलसाई सुबह से उठकर स्कूल भागते थे, कल ही कॉलेज की कक्षा के बाद फिल्मों का या घूमने जाने का प्रोग्राम बनता था, कल ही तो अपनी पहली नौकरी शुरु की थी, और अचानक जीवन की आखिरी किस्त नजर आने लगती है, सब बहुत जल्द ही और काफी लंबा अरसा भी।
कल 26 जनवरी है, और हमारे राष्ट्रीय पर्वों की एक बात बड़ी सुंदर है कि यह सब में उमंग भर देते हैं, चाहे फिर गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस, सभी धार्मिक और जातिगत त्योहारों की उमंग से थोड़ी सी हटकर और रोज की रविवार की छुट्टी की उमंग से थोड़ी सी बढ़कर, यह दो दिन हमारे अनुभव में ऐसे रहे हैं जब हर कोई आने वाले कल की ओर देखता है, आने वाले कल की सोचता है चाहे फिर पूरा दिन सो कर क्यों न निकालने का विचार हो। छब्बीस जनवरी, छब्बीस जनवरी है और पंद्रह अगस्त, पंद्रह अगस्त है और साथ है आने वाले कल की आस। गुजरे समय को हँसते हुए श्रद्धांजलि देने और आने वाले भविष्य का स्वागत करने के ये बेहतरीन दिन इतिहास के पन्नों से यही आने वाले कल की आशा लेकर तो निकले हैं और इसी लिए तो हम इन पर्वों को मानते और मनाते हैं। फिर भी ये 25 दिसंबर से 26 जनवरी का समय बड़ा विचित्र है, ख़्वाह मख़्वाह नए साल की खुमारी निकलते बीस दिन से ज्यादा बीत गए। ये साल तो अब शुरू हुआ लगता है, और कल के बाद हम आने वाले त्योहारों की ओर देखेंगे, अगली 25 दिसंबर तक।
