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ARUN DHARMAWAT

Tragedy

3  

ARUN DHARMAWAT

Tragedy

18. "आखिर कब तक"

18. "आखिर कब तक"

3 mins
340

"अरे तुम बच्चा लोग कितना शोर मचाता रे बाबा, एक घड़ी भी चुप नहीं रहने का, अक्खा वार्ड क्या अक्खा हस्पताल में जंगल का माफ़िक चीं चीं चां चां करता है, कोई कोयल का माफ़िक कुं कुं कोई तोता का माफ़िक टें टें और कोई कव्वा का माफ़िक कांऊँ कांऊं करता है .... हा हा ....."


सिस्टर ग्रेसी अपने आप से ही बात करते हुए एक बैड से दूसरे बैड के पास जा रही है, हर जच्चा बच्चा का हाल पूछ रही है और सबको अपनी तरफ से "एडवाइस" दे रही है ।

"ऐ पांच नंबर ...तुम्हारा बेबी कैसा है उसको "फीड" कराया ? नौ नंबर तुम्हारा "फीवर" अभी ठीक है ना ? बारह नंबर तुम्हारा "डिस्चार्ज टिकट" बन गया अभी डॉक्टर आयेंगा तो "मेडिसन" लिखवाने का तुम्हारे बेबी को "जोंडिस" हुआ ना ? "


पूरे वार्ड का चक्कर लगा कर सिस्टर ग्रेसी वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ जाती है । 

तब ही एक नर्स उनसे मिलने आती है .....

"हेलो सिस्टर .... हैप्पी ईस्टर, ओह निर्मला तुम, सेम टू यू .... हैप्पी हैप्पी ईस्टर ... कैसा है तुम ? जा कर आया ना चर्च ? प्रेयर किया गॉड को ? और तुम्हारा बच्चा लोग कैसा, सब ठीक है ना ? नवा नवा ड्रेस इतना "वेरायटी" वाला "डिश" सबको अच्छा लगा होएंगा ना ? "


"हाँ सिस्टर सब बच्चा लोग बहुत "एन्जॉय" कर रहा है आज शाम में "पार्टी" है खाना पीना डांस सब ... आपको भी आने का है सिस्टर, बहुत अच्छा लगेगा, आपको "इन्वाइट" करने आई मैं ।"

 

इतने में ही ज़ोर का धमाका होता है । पल भर में ही उस वार्ड का मंजर बदल जाता है । चारों तरफ चीख पुकार मच जाती है जो वार्ड थोड़ी देर पहले मासूम बच्चों की किलकारियों से गुंजायमान था अब मांस के लोथड़े और खून से लथपथ लाशों के ढेर में बदल जाता है । चारों तरफ हाहाकार मच जाता है । मानों प्रलय आ गई हो या भयंकर भूकंम्प आ गया हो । किसी को कुछ समझ नहीं आता ये अचानक क्या हुआ । हर कोई अपनी जान बचाकर भाग रहा है ।


छः महीने बाद .... 

"सिस्टर" ग्रेसी अपने घर में "व्हील चेयर" पे अकेली तन्हा बैठी है तब ही उस सन्नाटे को तोड़ती उसकी "मेड" रोजी की आवाज आती है .....

"सिस्टर चाय ....सिस्टर .....अब तो बाहर आ जाओ उस हादसे से, कब तक याद करते रहोगे ? दोनों पैर तो पहले ही गंवा चुके अब तो छोड़ दो याद करना"

"रोजी ..... क्यों होता है रे ऐसा ? उन मासूम बच्चों ने क्या गुनाह किया था ? जो इतना दर्दनाक मौत मिला उनको । मेरी आँखों के सामने वो नन्हें नन्हें हाथ पांव चलाते, रोते किलकारियां मारते बच्चे चीथड़ों में बदल गए । वो मांएं जो अपने बच्चों को छाती से लगाये दूध पिला रही थी एक ही पल में टुकड़ा टुकड़ा हो गई, चारों तरफ खून ही खून और मेरी बेस्ट फ्रेंड निर्मला .... 

(आंसू पोंछते हुए) मेरी आँखों के सामने .... उसका सर अलग धड़ अलग हो गया । कैसे भूल जाऊं ये सब। 

आखिर क्या चाहते हैं ये इंसानियत के दुश्मन । बेगुनाह इंसानों बच्चों औरतों को मार कर क्या मिल रहा इनको ? ये कैसा जिहाद है ? ये कैसी इबादत है ? ये कैसा मज़हब है ? 


नहीं .....नहीं... गॉड इनको कभी माफ नहीं करेगा .... कभी नहीं करेगा ....।"



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