ज़िद करो
ज़िद करो
क्यों बैठे ? चुपचाप निस्तेज
मुश्किलों से पराजित, वो तुम नहीं !
कमर कस लो, चलो, उठो !
ज़िद करो, आसमां छू लो।
हो बेरंग-वीरां कोई ज़िंदगी
नज़रोँ मे कहीं, हर कहीं
देखो नहीं, उठो, दौड़ो
ज़िद करो, उसमे रंग भरो।
क़ाबू पा सकते हो तुम
हर शै, शैतानों-दुश्मनों पे
शस्त्र धरो, रक्षा करो,
ज़िद करो, जंग जीतो।
न टूटो, न हारो, न गिरो,
लड़ने से पहले ही तुम,
अजेय क़िले भी ढहते हैं;
ज़िद करो, फ़तेह करो।
समाज की सोच बदलो,
आदिम-अशुभवृत्तियों की,
रूढ़िवादी-तंत्र को छोड़ो,
ज़िद करो, दुनिया बदलो।