युद्ध कर
युद्ध कर
बंधे हाथ, झुका सिर,
श्याम-वलयावृत्त
नत-निष्प्रभ आंखे
धुंधला वदन
सूखा कृष बदन …!
जैसे सिकुड़ गया हो गगन ...!
ये तेरा चित्र नहीं है...!
उठ ! जाग ! हे सबल !
चल उठ, जाग , जगा महाबल !
निज वास्तविक रुप में प्रकट हो |
चाहे परिस्थिति कितनी विकट हो |
उठा, शस्त्र संभाल,
फैला भुजाएं विशाल !
अपने-स्वयं को तू सिद्ध कर,
अशुभ का तू वध कर !
दुबक के क्यों रहा डर, संभल...!
चल जाग, युद्ध कर, युद्ध कर युद्ध कर !