यह हिंदी की बिंदी है
यह हिंदी की बिंदी है
ये हिंद की बिंदी है
ये भाषाए हिंदी है
हर भाव को अपनाती
हर बोली समा लेती
विस्तृत है इसका आंचल
जैसे हो मां की गोदी
यह भाषाए हिंदी है
हर बोली को पुचकारती
हर भाषा को दुलारती
सबको गले लगाकर
है प्रेम से संवारती
यह भाषा हिंदी है
कितनी समृद्ध है यह
गागर में भरती सागर
दिल के झरोखे सारे
यह खोल कर रखती है
ताजी हवा के झोंके
लेकर सदा जीती है
अविरल है जैसे धारा गंगा
की बह रही हो धारा
जीवंतता से निशदिन
नव प्रतिमान गढ़ रही है
भारत की विविधता को
एक हार में पिरो के
मां भारती के रूप को
हर दिन निखारती है
यह भाषाए हिंदी है
ये ही है मातृभाषा
ये ही है राजभाषा
राष्ट्रभाषा भी बनेगी
दिल से तो तुम अपना लो
यह भाषाए हिंदी है।