समर्पण
समर्पण
1 min
60
मन की तड़प ने दिल को शिवाला बना दिया
जीवन को तेरे प्रेम की हाला बना दिया
सारा हृदय का प्रेम धवल धार बन गया
नैनो के जल को गंगा की धारा बना दिया
श्रद्धा के फूल भावना के बेल बन गए
भीतर का भी समेट धतूरा बना दिया
सांसे मेरी शिव प्रेम का संगीत बन गई
धड़कन को घंटियों की ध्वनियाँ बना दिया
दो अक्ष तुझे देखकर रुद्राक्ष बन गई
दिल में तृतीय नेत्र का दीपक जला दिया।
