ये प्रेम नही
ये प्रेम नही
पी लो आज इन अश्रुओं को
सैलाब न तुम बनने देना,
हे शिव आज जरा,
इस पीड़ा को आश्रय देना,
वरन निमग्न होगा ब्रह्मांड सारा,
इस पीड़ा के सैलाब में,
मेरी इस पीड़ा को,
क्या समझोगे भाव से,
मानवता के चीरहरण पर,
अश्रु अविरल बह रहे,
मेरी इस पीड़ा को
क्यो नही समझ रहे,
यहाँ नही किसी को रहना,
सबको ही तो जाना है
बस कुछ पल का ही तो
रैन बसेरा बनाना हैं
पल पल पग पग
बस छलावा छलावा हैं,
नारी को बस देह समझ,
अधिकार अपना माना हैं,
वासना को प्रेम दिखा
बस छलने का बहाना हैं,
प्रेम की गहराई को कब
किसने पहचाना हैं।।
