STORYMIRROR

Devanshu Ruparelia

Abstract

4  

Devanshu Ruparelia

Abstract

ये पल कुछ ख़ास हे

ये पल कुछ ख़ास हे

1 min
261


ये पल कुछ खास हे 

मामूली सही इसमें कुछ तो बात है 

कागज़ की ही सही मेरे सर पे अभी ताज़ है.......

भोर के उगते सुनहरे सूरज में छिपी 

आनेवाली संध्या की सुरमयी लालिमा है

बरखा को अपने आगोश में छुपाये बैठे 

घने काले बदलो में भी 

लहराते फसलों की मुस्कान हे 

ये पल कुछ ख़ास है


मामूली ही सही पर इसमें कुछ तो बात है.......

मेरे थके हुए मन को सुकून देनेवाली 

शाम की आरती के शंखनाद और 

मोहल्लों में खेलते बच्चों की किलकारियाँ 

माँ के हाथों ने परोसा हुआ सरसों का साग और मक्के की रोटी 

ये पल कुछ ख़ास है 

>

मामूली सही पर इसमें कुछ तो बात है........

कुछ पलो की ख़ामोशी कठिन सफर में मगर 

मुश्किलों के बाद आनेवाली है अगले छोर पे है मंज़िले 

इस बात का यक़ीन अब होने लगा है अजनबियों को भी 

हालात से थककर अकेला ही चल पड़ा था मगर 

कारवाँ बनता गया रास्ते कटते गये 

हर पल कुछ निशाँ छोड़ते गये 

कुछ सौदेबाज़ियां 

कुछ समझौते 

कुछ जद्दोजहद 

कुछ जीतता कुछ हारता 

वक़्त की हवाओं को अपने परों से काटते 

ये पल कुछ तो खास है 

मामूली ही सही पर इसमें कुछ तो बात है 

कागज़ का ही सही अभी मेरे सर पे ताज़ है........


Rate this content
Log in

More hindi poem from Devanshu Ruparelia

Similar hindi poem from Abstract