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Shwet Kumar Sinha

Tragedy

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Shwet Kumar Sinha

Tragedy

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम

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लगता था कभी जहां दोस्तों का हुजूम

और सड़कों पर मेला,

गुपचुप वाले के पास लंबी कतार

और चाटवाले का वो ठेला ।

वीरान पड़ी उसी सड़क पे अब,

केवल कुछ सिपाही डंडा लिए दिखता है ।


खत्म हो गई चाट और फुचके की वो रौनक,

उसी ठेले पे अब मास्क और सैनिटाइजर बिकता है।


गूंजा करती थी किलकारियां गोद में जिन बच्चों की,

वह गोद अंतिम सांसें गिन रहे अपने ही बच्चे के लिए,

अब एंबुलेंस की राह तकता है ।


खत्म करो अब-बस बहुत हुआ,

किस कृत्य की सजा है मिल रही,

या किसने दी मानव जाति को बद्दुआ ।


मिटी हुई सिंदूर और उजड़े हुए मां के आंचल को देख,

कवि का यह रुग्ण मन,

है अश्रु से भरे नयन,

उठा जो मन में ये जोरों का टीज़

भीतर तक बहुत तेज दुखता है ।


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