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PRITAM KASHYAP

Abstract Inspirational Tragedy

3.9  

PRITAM KASHYAP

Abstract Inspirational Tragedy

यादों

यादों

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348


विज्ञान तरक्की करता है,

समय करवट बदलता है,

परंतु यादों को ना बदल पाता है,

अच्छी-बुरी खट्टी-मीठी कैसी भी यादें


क्यों ना हो हमेशा याद आती है,

और सताती है रोम-रोम सहम जाता है ।

आंखें स्वयं से क्यों कतराती है,

जब भी यादों की याद आती है,

यादों के बिना जीवन अधूरा है,

जैसे ताल बिना संगीत अधूरा है ।


यादें दिमाग को जोड़ती है,

यादें क्यों ना पंछी की तरह उड़ जाती है,

यादों का फासला भारी है,

यही तो यादों की एक बीमारी है ।


यादें हमेशा परेशानी लाती है,

दिल-दिमाग तन-मन की बीमारियां लाती है,

यह जाने का नाम न लेती है,

समय की तरह पीछे पड़ जाती है,


यादें भले क्यों ना छोटी हो,

फिर भी याद आ जाती है ।

मनुष्य को दिन रात सताती है,

अपने चक्रव्यूह में फंसआती है,

हंसाती है रुलाती है,


यादों से बचना मुश्किल है,

यादों का जाल भारी है,

यही तो खेल-खिलाड़ी है,

मनुष्य बहाने बनाता है,

यादों के गम में खो जाता है।।



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