यादों
यादों
विज्ञान तरक्की करता है,
समय करवट बदलता है,
परंतु यादों को ना बदल पाता है,
अच्छी-बुरी खट्टी-मीठी कैसी भी यादें
क्यों ना हो हमेशा याद आती है,
और सताती है रोम-रोम सहम जाता है ।
आंखें स्वयं से क्यों कतराती है,
जब भी यादों की याद आती है,
यादों के बिना जीवन अधूरा है,
जैसे ताल बिना संगीत अधूरा है ।
यादें दिमाग को जोड़ती है,
यादें क्यों ना पंछी की तरह उड़ जाती है,
यादों का फासला भारी है,
यही तो यादों की एक बीमारी है ।
यादें हमेशा परेशानी लाती है,
दिल-दिमाग तन-मन की बीमारियां लाती है,
यह जाने का नाम न लेती है,
समय की तरह पीछे पड़ जाती है,
यादें भले क्यों ना छोटी हो,
फिर भी याद आ जाती है ।
मनुष्य को दिन रात सताती है,
अपने चक्रव्यूह में फंसआती है,
हंसाती है रुलाती है,
यादों से बचना मुश्किल है,
यादों का जाल भारी है,
यही तो खेल-खिलाड़ी है,
मनुष्य बहाने बनाता है,
यादों के गम में खो जाता है।।
-----------------------------------------------प्रीतम कश्यप------------------------------------------------