यादों के पन्नों से
यादों के पन्नों से
यादों के पन्नों से ,कुछ पंक्तियाँ जो याद आयीं।
वो हसीन मंज़र याद आया, वो हर लबों कि लाली याद आयी,
याद आया वो बागों में मिलना , इंतज़ार वो उनका करना,
मनवाने के लिए रूठना ,और फिर गले से लगाना,
था अजीब दौर वो भी,जब मिलते थे जुनून से,
गले मिल कर, जब हम खुशियाँ थे बिखेरते।
घर कोई जब भी आता ,पानी पूछते थे,
अब तो सैनिटाइजर हि मानो ,वेलकम ड्रिंक हो गई है।
अपनायित में भी देखो ख़ौफ़ छुपी हुई है।
यादों के पन्ने फिर ईक बार जो फड़फड़ाये,
याद हमे वो उस सुबह की दिलाये ,
जब हलचल किचन में रहती थी उठते से,
तैयार होते थे बच्चे, और बड़े हड़बड़ी अनमने से।
टिफ़िन भी पैक होता था लंच भी बन जाता था।
घर पर देखों सुबह का माहौल बडा प्यारा था।
अब न बच्चों को ज़ल्दी है ना बड़ों का है दफ्तर,
अब किचन में लेकिन केवल सुबह की है राहत ,
पूरे दिन की है हलचल।
यादों के पन्नों से उस पन्ने पर जो नज़र ठहरी,
आँख भर आयी ,और टीस दिल मे उठी ।
याद उस की आयी ,जो थी मेरी साथी,
न आने पे गुस्सा,और देती थी देर से आने पे जिसे गाली।
कामवाली मेरी बहुत याद आती,
उसका वो झटपट से, घर को चमकाना।
बातों ही बातों में बर्तन धूल जाना।
एक दिन की छुट्टी भी जिसकी गवारा नही थी,
अबतो घर में उसकी एंट्री नही थी।
कई अनगिनत थे पन्ने मेरी यादों के ।
जब महफ़िलों में जम कर मस्तियां हमने की थी।
सज कर थे जाते ,लाली लिपस्टिक भी लगाते थे.।
रविवार को चाट का चटकारा लगाते।
पन्नों की फड़फड़ाहट ने हमे जगाया।
यादों की किताब बंद कर असलियत से तआरुफ़ कराया।
मुँह पर मास्क ,हाथों में सैनिटाइजर,दूरी है ज़रूरी,
ये हम को बताया।
वैक्सीनशन लगाकर भी दूरी ज़रूरी ,मास्क भी ज़रूरी ये हम को बताया।
याद फिर दिलाया,आगाह फिर कराया।