STORYMIRROR

Sarita Kumar

Abstract

4  

Sarita Kumar

Abstract

यादें

यादें

1 min
350


क़ैद है मोबाइल में तमाम अपने 

कुछ खास रिश्ते, कुछ बेनाम नाते 

कुछ भोली सूरत, कुछ नकचढ़े लोग 

हर पल रहने लगे हैं अब मेरी मुठ्ठी में 


जब चाहूं तब घूमा सकती हूं उन्हें 

नचा सकती हूं अंगुलियों पर 

जिन्होंने तड़पाया है दूर जाकर 

वो लोग जो दुनिया से विदा हो चुके हैं 

वो भी अक्सर झांक कर मुस्कुराते हैं 


जब उनकी बरसी पर लिखती हूं 

आकर आशीष दे जाते हैं 

क़ैद हैं तमाम अपने मेरे मोबाइल में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract