पहलू मे मेरे
पहलू मे मेरे
यूँ ही बैठे रहो पहलू में मेरे
शाम पल में निकल जायेगी..
ग़म की बदली समय सँग छटेगी
धूप ख़ुशी की खिल जायेगी..
सिलवटें जो पड़ी हैं माथ पर
धीरे-धीरे से सम्भल जायेगी..
खोया जो भी कुछ पाने में
देखना कुटी हो महल जायेगी..
पीर की चिड़ी फड़फड़ाती
तेरे आगोश में बहल जायेगी..
दिल में ही क़ैद रखना दर्द को
दुनिया सुनकर दहल जायेगी..
फ़ेर दूँ अँगुलियाँ तेरे केशों में
कुछ राहत तुम्हें मिल जायेगी..
होगी हासिल मंज़िल तुम्हें तब
मुस्कां लबों पर खिल जायेगी..
नादां! सबको समझे 'आईना'
ये सोच उसकी बदल जायेगी।