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Arun Gode

Abstract

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Arun Gode

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याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

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याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

व्यक्त ने पढ़ायां हम सबको  पाठ,

उम्र तो बढेगीं रखना बांध के तुम गांठ।  

मैंने सोचा अस्सी के पार जाने की बात,

मृत्यु के भय से छोड़ना नहीं जीवन की गांठ। 

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

 

उतार-चढ़ाव आएंगे रखना तुम सदा याद,

सुख-दुख में जीने की मैंने बांधी हैं गांठ। 

में और मेरे साथी मिलकर चलेंगे हर कदम,

मूझसे उन्हे जुदा करने का यम नहीं हैं दम।  

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

 

यह हैं तेरे-मेरे मन की बात यकीनन,

अस्सी तो एक संख्या कहने को आसान।       

क्योकि उसे जी लेना अब नहीं मुमकीन,

प्रदूषणयुक्त साँसे लेना नहीं रहा आसान। 

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

 

आठ और अस्सी में शून्यका अहम स्थान,

पीछे से आगे करो तो गणितीमुल्य समान। 

सुनिश्चित करनाही शून्य का अहम स्थान,

हम सबके लिए यह कार्य अहम और महान। 

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

 

जब थी मेरी उम्र सिर्फ आठ,

बांध ली थी महावीर मन में गांठ। 

जीना हैं कम से कम उम्र साठ,

दादा-दादी ,नाना-नानी ने पढ़ायां था अमृतपाठ। 

याद रखो आखरी नहीं मंजील साठ।

अरुण गोडे. 

१२ मौसम कालोनी ,

नागपूर -५

9890883959.


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