याद आ रही है
याद आ रही है
याद आ रही है
उन गलियों की
जहां खेल कर मैं बड़ा हुआ
उन राहों की जो आज भी
मेरे मन मे बसते हैं
वो कच्चा मकान
जिसमे मेरा बचपन बीता
वो छोटी दुकान जिसमे ना जाने
कितनी उधारी रह गयी
वो माँ की थपकी
वो बड़े भाई की झप्पी
दीदी का पीटना
छोटे भाई का खीजना
चोरी के लड्डू खाना
पल भर मे रोना गाना
वो आँख मिचौली
वो चूरन की गोली
वो कूल्फी की मटकी
वो डाली पर पतंग लटकी
वो अठन्नी चौवन्नी
वो लट्टू और घिरनी
वो स्कूल के साथी
वो मेले का हाथी
क्रिकेट फूटबाल और हाकी
रह गया बहूत कुछ बाकी
वो शनिवार का शक्तिमान,
कैप्टन व्योम, प्लूटो
और शाका लाका बूम बूम
चंद्रकांता, महाभारत
और वो मौगली,
चित्रहार और मालगुडी डेज
वो गर्मी की छुट्टी
वो बेफिक्र ज़िंदगी
दस पैसे की चटनी
पाँच पैसे की पापड़
वो पेंसिल के छिलके से रबर बनाना
दूसरे के कलम को अपना बताना
वो बचपन सुहाना वो बचपन सुहाना
याद आ रही है, बस याद आ रही है।
