वट वृक्ष समय का
वट वृक्ष समय का


वट वृक्ष समय का चल भी है अचल भी
पत्तियों में खंडहर पाओगे जड़ों में महल भी।
जीवन के क्षय होते क्षण मिल जाते हैं,
इसके पतझड़ के मौसम में।
बसंत में छिपे हैं कर्म और भावनाए,
मोह-माया है समागम में।
मौन श्वास की खाद से बढ़ता है बीतता भी
झूलते फलों में है चहल भी पहल भी
वट वृक्ष समय का चल भी है अचल भी।
धरती से जुड़ा है अटूट बंधन से,
नीले और काले आकाश तक फैला है।
अपनों को भूल कर कहीं मेला है,
माँ की कोख में हर समय अकेला है।
स्वर्ग में भी पसरा है और नर्क से भी जुड़ा,
समस्या भी यही है, यही है हल भी
वट वृक्ष समय का चल भी है अचल भी।