वसुधैव कुटुंबकम्
वसुधैव कुटुंबकम्
उदार चित है मेरा, सम्पूर्ण जगत मेरा परिवार ,
ये तेरा ये मेरा, करूँ तो हृदय को मुझे धिक्कार,
वट की तरह विशाल है, हृदय मेरा में इसमें
पूरे भारतवर्ष को सजाने का है जैसे कि संसार।
मैं नहीं हूँ हम है, ये पूरा मेरा देश बोल रहा है,
भाषा साहित्य और संस्कृति का भेष बोल रहा है।
बदले कोस कोस पर वाणी और चाहे बदले कोस
कोस पर प्राणी, भारतवर्ष का संदेश बोल रहा है।
पूरी धरा मेरा कुटुंब है, मैं इसमें एक हिस्सा हूं ,
चहूँ की बदलती रहने वाली मैं एक दिशा हूं।
क्या व्याख्या करूँ अपने भारतवर्ष और माँ
भारती की, मैं तो बस आज एक समीक्षा हूं
बस एक ख़्वाहिश है मेरी कि
दिनों पर उमड़ने वाली देशभक्ति, काश उमड़ने
लगे दिलों पर।
नहीं है पायदान मुश्किलों के हम, हो हर कदम
मुश्किलों पर।
हर घर में लहराये तिरंगा अगर, न पडे़ जरूरत
किलों पर।
कधें से कधां मिले गर, कदम से मिले हर कदम हो
मंज़िलों पर।