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विनीता धीमान

Abstract

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विनीता धीमान

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वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम

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इस धरा पर रहने वाले

सभी प्राणी, जीव, जंतु

सबकी भाषा है अलग

जितने रंग उतनी बोली

जितने साथ उतने अलग

कितने धर्म है अलग अलग

कितने नाम है अलग अलग

फिर भी माला के मोती

हम भारत के वासी

पूरा विश्व है हमारा

सबको साथ मे लेकर चलना

यही है हमने सीखा

इस धरा के कण कण में

हमारी संस्कृति रची बसी

हमारे संस्कार है धरोहर हमारी

रीति रिवाजों से बंधे हुए है

विश्व हमारा परिवार है

वसुधैव कुटुम्बकम नारा है

जो सदा मन मे रहा है

जहाँ भी जाओ

जहाँ भी रहो

सब भाई भाई है

माता एक है

हम संतान है उनकी

आओ सबको गले लगा कर

यही गीत दोहराते है

तू मेरा दिल तू मेरी जान

तू मेरा ईमान तू मेरी शान

तुझ पर मेरा जीवन कुर्बान।



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