STORYMIRROR

कुशाग्र जैन

Classics

2  

कुशाग्र जैन

Classics

वसन्त

वसन्त

1 min
136

जगह जगह छपे हैं इश्तिहार

वासन्ती त्यौहार के,


वसन्त आ रहा है

वसन्त जा रहा है

लेकिन मन मे है वसन्त का इंतजार


आए.... आए

एक वसन्त जो अनुभूत करा सके

वसन्त की स्नेह फुहार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics