STORYMIRROR

मिली साहा

Abstract

4  

मिली साहा

Abstract

वसंत ऋतु

वसंत ऋतु

1 min
238

प्रेम की पुरवाई चली ऋतुराज धरा पर आए,

सोलह श्रृंगार में सजी धरती भी देखो कैसे इठलाए,


रंग प्रेम का बिखरे, है चहुंओर अलौकिक आनंद,

छाई है अनोखी छटा, कलियां की मंद-मंद मुस्काए।


सरसों के फूल खिले जैसे बागों में चांदी खिल आई है,

प्रकृति के मुरझाए अधरों पर मुस्कान की छटा छाई है,


मनोहारी, मंत्र-मुग्ध, कुछ शरमायी,कुछ इठलाई सी,

ऋतु परिवर्तन का उपहार लेकर वसंत ऋतु आई है।


झूमे पंछी और कोयल गाए , मस्ती में गाते गीत मल्हार,

नवपल्लव, नवकुसुम से सजी प्रकृति देख झूमे ये संसार,


फाल्गुन, बसंत पंचमी का आगमन घर-घर में छाई खुशियां,

हुई हवा भी मस्तमगन देखकर प्रकृति का अनुपम श्रृंगार।


पतझड़ का हो गया अंत जग में छाई अद्भुत शोभा अनंत,

मन में उत्साह और प्रेम गीत जगाने देखो आया है बसंत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract