वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु
उमड़ घुमड़ कर रिमझिम सुर में
देखो वर्षा ऋतु है आई
धरती के कण-कण में आनंद
हरी-भरी सुंदरता छाई
घनन घनन घन गरजे बादल
आसमान में चमके बिजली
पेड़ पौधे सब मुस्कुरा उठे और
जग में छाई प्यारी हरियाली
कल कल सुर में बहती नदियां
देखो खुशी से झूम रही है
जंगल में नाच रहा मोर है
चमन में कलियां खिल रही है
भीग रहे बच्चे सड़कों पर
कागज की कश्तियां तैर रही है
कुह कुह सुर में गा रहे पपिहैं
मधुर संगीत सुना रहे हैं
सोंधी सोंधी महक मिट्टी की
सबके मन को लुभा रही हैं
नवजीवन की ज्योत जलाकर
बारिश की बूंदें बरस रही है।