वृक्ष हमारी रक्षा करते
वृक्ष हमारी रक्षा करते
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वृक्ष हमारी रक्षा करते
हम उनको ना बख़्शा करते।
तिल-तिल जलते सूर्यताप में
वृक्ष किनारे सुस्ता करते।
कह गये थे राम-रहीम
जब हरियाली आयेगी
मनुता पर तब चेतना होगी
और खुशहाली छायेगी।
देखना है स्वर्ग अगर
धरती के पावन तट पर
वृक्ष लगाओ फल-फूल के
प्रण लो ये मस्तक पर।
अलख जगाओ सुबह शाम
वृक्ष लगाओ प्रभु के नाम
अंधविश्वासों को दूर करो
वृक्षों को ना चूर करो।
देख दिखावे को बंद करो
अर्ध विकास को भंग करो
आंदोलित हो उठे संसार
वृक्षों के लिए श्रृम करो।
अंत में यह स्वर है मेरा
उठो, जागो, जागरूक करो
नहीं रोका यदि वृक्ष कटान
करना होगा महा-भुगतान।
कर्तन किया यदि, प्रभु के प्यारों का
सहना पड़ेगा कष्ट, प्रलय के वारों का
वृक्ष हमारी रक्षा करते
हम उनको ना बख़्शा करते।