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Hemant Shukla

Abstract

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Hemant Shukla

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वक़्त की गवाही

वक़्त की गवाही

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मैं वक़्त नहीं मैं आहट हूँ,

इस दौर ज़माने की चाहत हूँ।


जाने कितनों की मुस्कराहट हूँ,

हर दिल की राहत हूँ।


माना कुछ की कड़ुवाहट हूँ,

पर बदलाव की चाहत हूँ।


तू खोज रहा घड़ियों में मुझ को,

अरे देख कभी भीतर भी खुद को।


तू हुआ विफल तो मुझ को कोसा,

कि मैं लेकर आया था झोंका।


तू हुआ सफल तो भूल गया,

बीता कल भी न याद रहा।


तू ग्लानि लिए बैठा दिल में,

मैं दिन भर ही तो ग्लानि मिटाता।


तू जब ज़माने में ठोकर खाता,

मुझ को ही दोषी ठहराता।


क्या कसूर है मेरा इसमें?


तू लहरों में मस्त मगन रहता,

मैं भव मौजों को पार लगाता।


तू वक़्त रहे कुछ भी न करता,

मैं वक़्त पे दरिया छू कर आता।


तू कोस रहा बैठा मुझ को,

मैं बैठों को राहें दिखलाता।


ये वक़्त की सिर्फ चाहत है,

जो तुझे दे रहा आहट है।



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