वो
वो
मैं लम्बा हो रहा था
वो ठिगनी ही रह गई
मैं जहानी समझदार बन रहा था
वो झल्ली ही रह गई।
मैं आगे बढ़ रहा था
वो पीछे ही छूट गई
मैं किताबों और डिग्रियों के पीछे भागा
वो व्रतों और मंदिरों के पीछे।
मैं खाने से बचने लगा
वो दवाइयों से
मैं घर देर से आने लगा
वो देर तक जागती रही।
मैं दुनियादारी और राजनीति में लगा रहा
वो पूजापाठ और तीमारदारी में
मैं भागने लगा था उसके आँचल की छाँव से
वो मेरी छाया की भी बलैयाँ लेती रही।
मैं ग़लतियाँ करता रहा
वो जवाबदेही लेती रही
मैं काजल का टीका लगाने नहीं देता
वो दुआओं से नज़र उतार देती।
मैं कसमसाने लगा उसकी छोटी सी चारदीवारी में
वो गोद में ब्रम्हाण्ड बसाये बैठी रही
मैं आसमान की ऊँचाइयों तक पहुँच गया
वो बेसन के हलवे में उलझी रही।
मैं शायद उसकी हथेलियों के धागों से उधड़ रहा था
वो फिर भी ममता की सिलाई किए गई
मैं बेटे से पति-पिता बन चुका था
पर वो हमेशा माँ ही बनी रही।।