वो सुहाने दिल।
वो सुहाने दिल।
वो क्या सुहाने दिन थे,
जब ख्वाब हमारे हसीन थे,
हाथ पकड़ते मां के
स्वभाव हमारे सालीन थे।
सूरज जैसे ढलता गया,
स्वभाव वैसे खलता गया,
पहले कहते थे जी और आप
अब तू तड़ाका बढ़ता गया।
चेहरे पर मुस्कान थी,
सिर्फ मां हमारी जान थी,
अब जान कुछ लोगों में बट गए,
मुस्कान चेहरे से हट गए।
२ घंटे की पढ़ाई से
परीक्षा पास करते,
अब दिन-रात लगाकर भी
३५ के पास ही रहते।
झूठ मुंह पर नहीं आता,
सॉरी पहले निकल जाता,
थोड़ी डांट खाने पर
आंसू आंख से आता।
अब आंसू छोड़ डांट पर
अंगार है बरसते,
अब कविता लिखते समय भी झूठ है
कलम से निकलते।