वो समन्दर है
वो समन्दर है
बहुत कुछ खोया है उसने
अपने जीवन की दिनचर्या में
बहुत कुछ सहना सीखा है
महज़ बात को कहने में
आज तूफ़ान हिलोरे लेते हैं
समाज रूपी कुरीतियों में
नहीं डरी हैं मेरी माताएँ
उनको आगोश में लेने में
एक रुप समुन्दर रुपी उनका
मुझे देखने को मिल जाता है
बाबुल का घर छोड़ चलीं
जब पति का घर मिल जाता है
जरा हिचक न दिखती उनमें
अनजाने घर में अपना
दायित्व निभाने में
सच में क्षमता रखती हैं वो
सब कुछ अपने में समाने में।
