Vivek Agarwal

Inspirational

4.9  

Vivek Agarwal

Inspirational

वो दिन आखिर कब आयेगा

वो दिन आखिर कब आयेगा

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एक दिन झूठ के बादल से,

सच का सूरज फिर निकलेगा।

आँखों पर बाँधा कपडा भी,

आखिर इक दिन तो उतरेगा।


सब मिल कर आगे आयेंगे,

थोड़ी हिम्मत कर पायेंगे।

इस खौफ का ताला टूटेगा,

खुल कर सब कुछ कह जायेंगे।


जाहिल बेख़बरी का सारा,

अँधियारा जब हट जायेगा।

अंदर पलता जो शोला है,

गोला बन बाहर आयेगा।


वो दिन आखिर कब आयेगा।

वो दिन आखिर कब आयेगा।


दहशतगर्दी की असली वजह,

दुनिया को भी दिख जाएगी।

कौन हैं वो क्या मकसद है,

ये बात समझ में आएगी।


अब और नहीं हम हारेंगे,

मन के डर को अब मारेंगे।

जितने हुए हैं जुल्म-औ-सितम,

हर्ज़ाना सबका मांगेंगे।


जब खून-खराबे ना होंगे,

मासूम न मारा जायेगा।

चैन ओ अमन का परचम जब,

इस दुनिया में लहरायेगा।

  

वो दिन आखिर कब आयेगा।

वो दिन आखिर कब आयेगा।


सब कहते हैं चुप रहने को,

घुट घुट कर ये सब सहने को।

आखिर कब तक हम बैठेंगे,

मन आकुल है सब कहने को।


जिन जुल्मों को सहते आये,

आँसू भी ना बहने पाये।

ऊपर से अत्याचारी को,

महिमामंडित करते आये।


असली अपराधी का आखिर

कब दोष दिखाया जायेगा।

सब मज़लूमों को दुनिया में,

इन्साफ दिलाया जायेगा।


वो दिन आखिर कब आयेगा।

वो दिन आखिर कब आयेगा।


हर मज़हब एक नहीं होता,

सच्चाई को सुन पाएगी।

सर तन से जुदा के नारों की,

जब जड़ ही जलाई जाएगी।


कितने मंदिर तो टूटे हैं,

कितनों की अस्मत लूटे हैं।

तलवारों के डर से कितने

अपने मज़हब से छूटे हैं।


काशी मथुरा का वैभव जब,

पहले सा ही हो जायेगा।

हर टूटे मंदिर पर जिस दिन,

भगवा फिर से लहरायेगा।


वो दिन आखिर कब आयेगा।

वो दिन आखिर कब आयेगा।


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