वो देशभक्त भी थी
वो देशभक्त भी थी
उदय के वस्त्र पहन चन्दन बहुत इठलाये थे,
माँ आज तो हमको भी राजकुमार बना दिया यह कहकर मुस्कुराये थे,
बेटे की भोली -भोली बातें भी उसे मकसद से हिला नहीं सकी थी।
नहीं जिसे लालच सत्ता का था,
बस अपना फ़र्ज़ निभाना था,
मेवाड़ की जनता को बनवीर से बचाना था।
नंगी तलवार हाथ में लिए बनवीर धमक आया था,
उदय कहाँ हैं पूछने पर पन्ना ने इशारा कर दिया था,
माँ का ह्रदय हाहाकार कर रहा लेकिन वह नहीं घबराई थी।
बनवीर के मन में उठती अगर आशंका कोई छोटी सी भी,
उदय के जीवन के साथ ही मेवाड़ को नष्ट कर देती,
इसीलिए वह पुत्रवध का शोक भी नहीं मना सकती थी।
आँखों से आँसू नहीं बहा था ह्रदय तो बहुत रोया था,
उदय अब सुरक्षित है उसने अपना फ़र्ज़ निभाया था,
अमर हो गयी वह इतिहास में हिम्मत उसने जो दिखाई थी।
माँ तो थी ही, साथ ही वो देशभक्त भी थी,
इसीलिए हँसते -हँसते अपने बच्चे की दी क़ुर्बानी थी।
