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Sangram Pisat

Tragedy

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Sangram Pisat

Tragedy

वो 'बाप' है ना यार...

वो 'बाप' है ना यार...

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चप्पल टूट गयी थी उनकी,

पसंद नहीं, पैसे देखकर 'ऐड टू कारट" भी कर लियी उन्होंने,

दोपहर तुम्हारा फोन आया,

पैसे नहीं, पसंद देखकर रात को तुम्हारे नए जूते घर आए हैं

बीच रास्तें मैं उन्होंने अपने चप्पल भी सिलवाए हैं।  


वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं।  


घरसे जल्दी निकले थे सुबह,

देर रात घर आए हैं। 

घर के खर्चे, कर्जे के हफ्ते, ऑफिस की पॉलिटिक्स, माँ से नोकझोक और तुम्हारे अरमान...

दिन भर, हां दिन भर,

दोनों कंधो पे उठाये हैं,

रात को हंसते हुए तुम्हारे सामने आए हैं। 


हंसी के यह मुखौटे बाजार में पैसों से नहीं ख़रीदे जाते,

वो उन्होंने खुद बनाये हैं। 

वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं। 


तुम्हे उबेर ओला के लिए कभी डाटते नहीं है,

रात के वक़्त, कितना भी पैसा लगे कैब से ही घर आना बताते हैं,

और सुबह १० रुपये बचाने के लिए १-२ किलोमीटर चलके जाते हैं। 

वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं। 


घर पे कुछ पुराना हो जाए,

उस पे वो हक़ जमाते हैं...

घर में कुछ नया आए,

उसपे पहला हक़ तुम्हे देते हैं। 

वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं। 


चार साल पुरानी घड़ी में आज फिर से सेल डलवाये हैं,

वो नयी गोल्डन डायल की घड़ी वही थी,

उसके प्राइस टैग से नजर हटाकर घर आए हैं। 

तुम तो अपनी एप्पल वाच से खुश हो ना?

वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं। 


सारे बड़े सपने तुम्हारे लिए देखते हैं

और अपनी सारी खुशियां छोटी चीज़ों में समेट लेते हैं।

वो 'बाप' है ना यार,

उन्होंने जरूर अपने 'ख्वाब' जलाए हैं। 


 



  

 


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