वो 24 घण्टे..!
वो 24 घण्टे..!
वो 24 घण्टे..,
महज कुछ मिनट्स नहीं थे।
अपितु पूरे जीवन के,
दुर्लभ घण्टों में सर्वश्रेष्ठ थे।
नवंबर की वो कपकपाती रात,
लहू को जमा देने वाली बरसात।
हर पल एक पल सुकून की चाहत,
24 घण्टे में दो लीटर पानी की राहत।
मेरे सैनिक बनने का वो जज़्बात,
दिलाता अंतिम क्षणों का ऐहसास।
लथ-पथ गिरती समहलती उठती,
हर बार साहस भर फिर से चलती।
मिलों पैदल चलती ही रहती,
बस्ता लाद पीछे को रखती।
दुर्गम पहाड़ी यात्रा को बढ़ती,
हर पल ख़ुद से गिरती समहलती।
नींद-भूख,प्यास-सुकून,
ख़ुद मालूम रुष्ठ सी लगती।
रात की काली अंधेरों में,
दुश्मन पाँव के गस्त भी सुनती।
लड़ती छुपती ख़ुद को बचाती,
दुश्मन को गहरी नींद सुलाती।
बच के जब बाहर को आती,
कुछ पल सुकून की साँस ले पाती।
24 घण्टे थे वो अनमोल,
शब्दों में न उसके बोल।
यूँ समझलो जीत गयी,
मुश्किलों से लड़ना सिख गयी।
