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ananya rai

Inspirational

4.8  

ananya rai

Inspirational

वनिता

वनिता

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देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !! 

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!


न लाज, शर्म, न आडम्बर,

उठकर तू धर्म विज्ञान बना !!

डटकर एक ज्वाला सी फिर, 

हिम - पर्वत पे स्थान बना !! 


आन बना, बान बना, 

मुख पे ओज शान बना !!

दे कर स्वयं को सम्मान तू,

खुद की अब पहचान बना !!


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !!

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !! 


हो धर्म समान, स्त्री का मान, 

पुरुष कर्म प्रधान कर !! 

ज्ञान की आभा से ज्योतित, 

सरल सत्य विधान कर !!


धर धीरज, सीता सा तू, 

एक सृजन फिर तैयार कर !!

बचाने लाज द्रौपदी की फिर, 

कृष्ण का सृष्टि में अवतार कर !!


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !!

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!


काल कृपाल, अति शोभित भाल, 

कंचन कुञ्ज, विनोद हो तुम !!

कभी मात जगत की तो कभी, 

पत्नी रूप प्रमोद हो तुम !!


रणचंडी सी छवि धरके भी, 

चंचल शिशु सी अबोध हो तुम !! 

एक अवरोध निरोध सा, 

बड़ा विनम्र अनुरोध हो तुम !! 


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !!

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00, 100, 100); background-color: rgb(255, 255, 255);">देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!


भर प्रकाश, नव नूतन में, 

जीवन तेरा श्रृंगार कर !!

वाणी सरस - श्यामला सी तेरी, 

भीषण तेरा प्रतिकार कर !!


प्रतिशोध, शक्ति से अपनी, 

ले चैतन्य मन अब संबित कर !!

भूल कर ममता तेरी ओ नारी, 

पापियों को रक्त से लंबित कर !!


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !!

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!


लक्ष्मी, दुर्गा, काली हो, 

हे ब्रह्माणी, हे रुद्राणी तुम !!! 

हो कण कण में अम्बा !!! 

माँ कमलानी माँ भद्राणि तुम !!! 


सत की सत्ता रखती हो, 

जग की रानी कृपलानी तुम !!

धर्म बचाया युग युग में, 

रानी तुम महारानी तुम !!


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !! 

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!


अनुशाशित, और सम्भाषित, 

ब्रह्मा से तुम परिभाषित हो !! 

तड़ित छवि, नीलाम्बर की सी, 

सिंहासन पे तुम आसित हो !!


हो समता की मूरत तुम, 

फिर क्यों शीश झुकाती हो !!

जग को जानने वाली जगदम्बा, 

क्यों इतना गंभीर दुःख पाती हो !!


देख यथार्थ, कर पुरुषार्थ, 

नारी तू ब्रह्माण्ड बना !! 

देकर ज्ञान गीता का फिर तू, 

एक अर्जुन सा पार्थ बना !!



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